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________________ मंगल व लोकोत्तम की भावना इसलिए यह समझ लेने जैसा है कि महावीर के पास नास्तिक के लिए जो उत्तर है वह तथाकथित ईश्वरवादी के पास नहीं है। क्योंकि नास्तिक ईश्वरवादी से यही कहता है कि तुम्हारे भगवान ने क्यों बनाया? बड़ी कठिनाई खड़ी होती है। और बड़ी कठिनाई यह खड़ी होती है कि ईश्वरवादी को मानना पड़ता है कि उसमें वासना उठी जगत को बनाने की। जब भगवान तक में वासना उठती है तो आदमी को वासना से मुक्त करने का फिर कोई उपाय नहीं है। भगवान ने चाहा, ही डिज़ायर्ड। जब भगवान भी चाहता है, और भगवान भी बिना चाह के शांत नहीं रह सकता, तो फिर आदमी को अचाह में कैसे ले जाओगे? क्या भगवान परेशान था, जगत नहीं था, तो? कोई पीड़ा होती थी? वैसी ही जैसे एक चित्रकार को चित्र न बने, तो होती है? एक कवि को कविता निर्मित न हो पाये, तो होती है? क्या ऐसा ही परेशान और चिंतित होता था? क्या उसमें भी चिंता और तनाव घर करते हैं? ईश्वरवादी दिक्कत में रहा है। उसको स्वीकार करना पड़ता है कि भगवान ने चाहा। और तब बहुत बेहूदी बातें उसको स्वीकार करनी पड़ती हैं। उसे स्वीकार करना पड़ता है-ब्रह्मा ने स्त्री को जन्म दिया और फिर उसी को चाहा। क्योंकि उसे ब्रह्मा और चाह में कोई तालमेल बिठाना पड़ेगा। तो एक बहुत एब्सर्ड घटना घटी। और वह यह कि ब्रह्मा ने जिसे पैदा किया वह तो उसका पिता हो गया। फिर उसने अपनी बेटी को चाहा। फिर वह संभोग के लिए आतुर हो गया, और फिर वह अपनी बेटी के पीछे भागने लगा। फिर बेटी उससे बचने के लिए गाय बन गयी, तो वह बैल हो गया। फिर बेटी उससे बचने के लिए कुछ और हो गयी, तो वह कुछ और हो गया। वह बेटी जो-जो होती चली गयी, वह ब्रह्मा फिर वही-वही जीव का नर होता चला गया। तो अगर ब्रह्मा भी ऐसा चाह में भाग रहा हो, तो आप जब सिनेमागृह जाते हैं तो बिलकुल ब्रह्मस्वरूप हैं। बिलकुल ठीक चले जा रहे हैं। आपको कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए। आप उचित ही कर रहे हैं। वह स्त्री फिल्म अभिनेत्री हो गयी तो आप फिल्म-दर्शक हो गये- आप चले जा रहे हैं। तब फिर सारा जगत वासना का फैलाव हो जाता है।। ___ महावीर ने इसे जड़ से काट दिया। महावीर ने कहा कि नहीं, अगर भगवत्ता की तरफ ले जाना है लोगों को तो भगवान को शून्य करो। बड़ी अजीब बात है। अगर लोगों को भगवान बनाना है तो यह भगवान की धारणा को अलग करो। बहुत अजीब, क्योंकि महावीर ने कहा- भगवान में ही चाह को रख दोगे पहले, डिजायर को रख दोगे पहले- क्योंकि उसके बिना तो जगत का निर्माण न होगा। तो फिर आदमी से चाह को शून्य करने का कारण क्या बचेगा? तो महावीर ने कहा- जगत अनिर्मित है, अनक्रियेटेड है। किसी ने बनाया नहीं है- 'है'। और विज्ञान के लिए भी यही लाजिकल, तर्कयुक्त मालूम पड़ता है। क्योंकि इस जगत में कोई चीज बनायी हुई नहीं मालूम पड़ती-है ही। और न इस जगत में कोई चीज नष्ट होती मालुम पड़ती है, न कोई चीज निर्मित होती मालूम पड़ती है— सिर्फ रूपांतरित होती मालूम पड़ती है। इसलिए महावीर ने जो परिभाषा की है पदार्थ की, वह इस जगत में की गयी सर्वाधिक वैज्ञानिक परिभाषा है। अदभुत शब्द महावीर ने खोजा है- पुदगल - मैटर के लिए। और ऐसा शब्द जगत की किसी भाषा में नहीं है। पदार्थ के लिए महावीर ने पदार्थ नहीं कहा, नया शब्द गढ़ा- पुदगल / पुदगल का अर्थ है - जो बनता और मिटता रहता है और फिर भी है। जो प्रतिपल बन रहा है और मिट रहा है, और है। जैसे नदी प्रतिपल भागी जा रही है, चली जा रही है, हुई जा रही है और फिर भी है। फ्लोइंग एंड इज़, बह रही है और है। महावीर ने कहा कि जो चीज बन रही है, मिट रही है, न बनकर सृजन होता है उसका, न मिटकर समाप्त होती है-बिकमिंग। पुदगल का अर्थ है-बिकमिंग। नैवर बीइंग एंड आलवेज बिकमिंग। कभी 'है' की स्थिति में भी नहीं आती पूरी, कि ठहर जाए। बस होती रहती है। तो महावीर ने कहा-पुदगल वह है जो प्रतिपल जन्म रहा, प्रतिपल मर रहा, फिर भी कभी निर्मित नहीं होता, फिर भी कभी समाप्त नहीं होता, चलता रहता है - गत्यात्मक। 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340002
Book TitleMahavir Vani Lecture 02 Mangal va Lokottam ki Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size92 MB
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