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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 कहां जा रहा है। नमोकार नमन का सूत्र है। यह पांच चरणों में समस्त जगत में जिन्होंने भी कुछ पाया है, जिन्होंने भी कुछ जाना है, जिन्होंने भी कुछ जीया है, जो जीवन के अंतर्तम गूढ़ रहस्य से परिचित हुए हैं, जिन्होंने मृत्यु पर विजय पायी है, जिन्होंने शरीर के पार कुछ पहचाना है उन सबके प्रति - समय और क्षेत्र दोनों में। लोक दो अर्थ रखता है। लोक का अर्थ : विस्तार में जो हैं वे, स्पेस में, आकाश में जो आज हैं वे –लेकिन जो कल थे वे भी और जो कल होंगे वे भी। लोक - सव्व लोए : सर्व लोक में, सव्वसाहणं : समस्त साधुओं को / समय के अंतराल में पीछे कभी जो हुए हों वे, भविष्य में जो होंगे वे, आज जो हैं वे, समय या क्षेत्र में कहीं भी जब भी कहीं कोई ज्योति ज्ञान की जली हो, उस सबके लिए नमस्कार। इस नमस्कार के साथ ही आप तैयार होंगे। फिर महावीर की वाणी को समझना आसान होगा। इस नमन के बाद ही, इस झुकने के बाद ही आपकी झोली फैलेगी और महावीर की संपदा उसमें गिर सकती है। नमन है 'रिसेटिविटी', ग्राहकता। जैसे ही आप नमन करते हैं, वैसे ही आपका हृदय खुलता है और आप भीतर किसी को प्रवेश देने के लिए तैयार हो जाते हैं। क्योंकि जिसके चरणों में आपने सिर रखा, उसको आप भीतर आने में बाधा न डालेंगे, निमंत्रण देंगे। जिसके प्रति आपने श्रद्धा प्रगट की, उसके लिए आपका द्वार, आपका घर खुला हो जाएगा। वह आपके घर, आपका हिस्सा होकर जी सकता है। लेकिन ट्रस्ट नहीं है, भरोसा नहीं है, तो नमन असंभव है। और नमन असंभव है तो समझ असंभव है। नमन के साथ ही 'अंडरस्टेंडिंग' है, नमन के साथ ही समझ का जन्म है। इस ग्राहकता के संबंध में एक आखिरी बात और आपसे कहूं। मास्को यूनिवर्सिटी में 1966 तक एक अदभुत व्यक्ति था : डा. वार्सिलिएव। वह ग्राहकता पर प्रयोग कर रहा था। 'माइंड की रिसेप्टिविटी', मन की ग्राहकता कितनी हो सकती है। करीब-करीब ऐसा हाल है जैसे कि एक बड़ा भवन हो और हमने उसमें एक छोटा-सा छेद कर रखा हो और उसी छेद से हम बाहर के जगत को देखते हैं। यह भी हो सकता है कि भवन की सारी दीवारें गिरा दी जाएं और हम खुले आकाश के नीचे समस्त रूप से ग्रहण करने वाले हो जाएं। वार्सिलिएव ने एक बहुत हैरानी का प्रयोग किया - और पहली दफा। उस तरह के बहुत से प्रयोग पूरब में -- विशेषकर भारत में, और सर्वाधिक विशेषकर महावीर ने किये थे। लेकिन उनका 'डायमेंशन', उनका आयाम अलग था। महावीर ने जाति-स्मरण के प्रयोग किये थे कि प्रत्येक व्यक्ति को आगे अगर ठीक यात्रा करनी हो तो उसे अपने पिछले जन्मों को स्मरण और याद कर लेना चाहिए। उसको पिछले जन्म याद आ जाएं तो आगे की यात्रा आसान हो जाए। लेकिन वार्सिलिएव ने एक और अनूठा प्रयोग किया। उस प्रयोग को वे कहते हैं : 'आर्टिफिशियल रीइनकारनेशन' / 'आर्टिफिशियल रीइनकारनेशन', कृत्रिम पुनर्जन्म या कृत्रिम पुनरुज्जीवन - यह क्या है? वार्सिलिएव और उसके साथी एक व्यक्ति को बेहोश करेंगे, तीस दिन तक निरंतर सम्मोहित करके उसको गहरी बेहोशी में ले जाएंगे, और जब वह गहरी बेहोशी में आने लगेगा, और अब यह यंत्र हैं - ई.ई.जी. नाम का यंत्र है, जिससे जांच की जा सकती है कि नींद की कितनी गहराई है। अल्फा नाम की वेव्स पैदा होनी शुरू हो जाती हैं, जब व्यक्ति चेतन मन से गिरकर अचेतन में चला जाता है। तो यंत्र पर, जैसे कि कार्डियोग्राम पर ग्राफ बन जाता है, ऐसा ई.ई.जी. भी ग्राफ बना देता है, कि यह व्यक्ति अब सपना देख रहा है, अब सपने भी बन्द हो गए, अब यह नींद में हैं, अब यह गहरी नींद में है, अब यह अतल गहराई में डब गया। जैसे ही कोई व्यक्ति अतल गहराई में डब जाता है. उसे सुझाव देता था वार्सिलिएव। समझ लें कि वह एक चित्रकार है, छोटा-मोटा चित्रकार है, यह चित्रकला का विद्यार्थी है, तो वार्सिलिएव उसको समझाएगा कि तू माइकल एंजिलो है, पिछले जन्म का, या वानगाग है। या कवि है तो वह समझाएगा कि त शेक्सपीयर है, 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.340001
Book TitleMahavir Vani Lecture 01 Mantra Divya Lok ki Kunji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size76 MB
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