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________________ मंत्र : दिव्य-लोक की कुंजी अहिंसक न हो और अहिंसा का आचरण कर सकता है। एक आदमी लोभी हो और अलोभ का आचरण कर सकता है। उलटा नहीं है, 'द वाइस वरसा इज़ नाट पासिबल'। इससे एक खतरा भी पैदा हुआ। आचार्य हमारी पकड़ में आता है, लेकिन वहीं से खतरा शुरू होता है; जहां से हमारी पकड़ शुरू होती है, वहीं से खतरा शुरू होता है। तब खतरा यह है कि कोई आदमी आचरण ऐसा कर सकता है कि आचार्य मालूम पड़े। तो मजबूरी है हमारी। जहां से सीमाएं बननी शुरू होती हैं, वहीं से हमें दिखाई पड़ता है। और जहां से हमें दिखाई पड़ता है, वहीं से हमारे अंधे होने का डर है। ____ पर मंत्र का प्रयोजन यही है कि हम उनको नमस्कार करते हैं जिनका ज्ञान उनका आचरण है। यहां भी कोई विशेषण नहीं है। वे कौन? वे कोई भी हों। एक ईसाई फकीर जापान गया था और जापान के एक झेन भिक्षु से मिलने गया। उसने पूछा झेन भिक्षु को कि जीसस के संबंध में आपका क्या खयाल है? तो उस भिक्षु ने कहा, मुझे जीसस के संबंध में कुछ भी पता नहीं, तुम कुछ कहो ताकि मैं खयाल बना सकू। तो उसने कहा कि जीसस ने कहा है, तुम्हारे गाल पर एक चांटा मारे, तुम दूसरा गाल उसके सामने कर देना। तो उस झेन फकीर ने कहा : आचार्य को नमस्कार / वह ईसाई फकीर कुछ समझ न सका। उसने कहा, जीसस ने कहा है कि जो अपने को मिटा देगा, वही पाएगा। उस झेन फकीर ने कहा : सिद्ध को नमस्कार। वह कुछ समझ न सका। उसने कहा, आप क्या कह रहे हैं? उस ईसाई फकीर ने कहा कि जीसस ने अपने को सूली पर मिटा दिया, वे शून्य हो गये, मृत्यु को उन्होंने चुपचाप स्वीकार कर लिया, वे निराकार में खो गये। उस झेन फकीर ने कहा : अरिहंत को नमस्कार / __ आचरण और ज्ञान एक हैं जहां, उसे हम आचार्य कहते हैं। वह सिद्ध भी हो सकता है, वह अरिहंत भी हो सकता है। लेकिन हमारी पकड़ में वह आचरण से आता है। पर जरूरी नहीं है, क्योंकि आचरण बड़ी सूक्ष्म बात है और हम बड़ी स्थूल बुद्धि के लोग हैं। आचरण बड़ी सूक्ष्म बात है! तय करना कठिन है कि जो आचरण है...अब जैसे महावीर को खदेड़ कर भगाया गया, गांव-गांव महावीर पर पत्थर फेंके गये। हम ही लोग थे, हम ही सब यह करते रहे। ऐसा मत सोचना कोई और / महावीर की नग्नता लोगों को भारी पड़ी, क्योंकि लोगों ने कहा यह तो आचरणहीनता है। यह कैसा आचरण? आचरण बड़ा सूक्ष्म है। अब महावीर का नग्न हो जाना इतना निर्दोष आचरण है, जिसका हिसाब लगाना कठिन है। हिम्मत अदभुत है। महावीर इतने सरल हो गये कि छिपाने को कुछ न बचा। अब महावीर को इस चमड़ी और हड्डी की देह का बोध मिट गया और वह जो, जिसको रूसी वैज्ञानिक 'इलेक्ट्रोमैग्नेटिक-फील्ड' कहते हैं, उस प्राण-शरीर का बोध इतना सघन हो गया कि उस पर तो कोई कपड़े डाले नहीं जा सकते, कपड़े गिर गये। और ऐसा भी नहीं कि महावीर ने कपड़े छोडे, कपड़े गिर गये। ___ एक दिन गुजरते हुए एक राह से चादर उलझ गयी है एक झाड़ी में तो झाड़ी के फूल न गिर जाएं, पत्ते न टूट जाएं, कांटों को चोट न लग जाए, तो आधी चादर फाड़कर वहीं छोड़ दी। फिर आधी रह गयी शरीर पर। फिर वह भी गिर गयी। वह कब गिर गयी, उसका महावीर को पता न चला। लोगों को पता चला कि महावीर नग्न खड़े हैं। आचरण सहना मुश्किल हो गया। ___ आचरण के रास्ते सूक्ष्म हैं, बहुत कठिन हैं। और हम सब के आचरण के संबंध में बंधे-बंधाये खयाल हैं। ऐसा करो - और जो ऐसा करने को राजी हो जाते हैं, वे करीब-करीब मुर्दा लोग हैं। जो आपकी मानकर आचरण कर लेते हैं, उन मुर्दो को आप काफी पूजा देते हैं। इसमें कहा है, आचार्यों को नमस्कार। आप आचरण तय नहीं करेंगे, उनका ज्ञान ही उनका आचरण तय करेगा। और ज्ञान परम स्वतंत्रता है। जो व्यक्ति आचार्य को नमस्कार कर रहा है, वह यह भाव कर रहा है कि मैं नहीं जानता क्या है ज्ञान, क्या है आचरण, लेकिन जिनका भी आचरण उनके ज्ञान से उपजता और बहता है, उनको मैं नमस्कार करता हूं। 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340001
Book TitleMahavir Vani Lecture 01 Mantra Divya Lok ki Kunji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size76 MB
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