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________________ 388 Padmanabh S, Jaini Jambu-iyoti आदितके वंदे कहीं कहा दीप वोहियै / काह परकार ईस कौन कबल आहार जे कहे है तिन्हकै जग्यो है पा[प] कहिये // 20 // मोहनी करम नासै चेदनी को बल नासै विस के विनासै ज्यौं भुजंगम की हीनता / इंद्रिनि के ग्यान सौ न सुख दुख वेदै जहाँ वेदनी को स्वाद वेदै इंद्रीयी अधीनता / आतमीक अंतर अनंत सुख वेदै जहाँ बाहिर निरंतर है साता की अछीनता। तहां भूख आदिक असाता कहा बल करै विस कणिका न करै सागर मलीनता // 21 // देव मानसी कही अहार से तृपति होइ नारकीक जीवनि कौं कर्म कौं अहार है। नर तिर्यंच कै प्रगट कवला आहार एक इंद्री धारक के लेप को आधार है / / अंडे की विरधि होइ ओजाहार सेवन तै पंखी उर ऊषमा तै ताकी बढवार है। नोकर्मवर्गना को केवली कै है आहार थितिकारक है जो न सविकार है // 22 // दोहरा और जीव को लगत नहि, तनपोषक सुखदाइ / समय समय जगदीप कौं, लगें वरगना आइ / / 23 / / छपय क्षुधा त्रिषा भय दोष रोग जर मरणजनम मद मोह खेद परसेद नीद विस्मय चिंता गद रति विषाद ! ए दोष नहि अष्टदश जाकै केवलग्यान अनंत दरसन सुख वीरज ताकै नहि सपत धातु // सब मल रहित परमौदारिक तन सहित अंतर अनंत सुख रस सरस सो जिनेस मुनिपति सहित / / 2416 दोहरा जिहां आहार बनै नहीं, तहां कयौं होइ निहार / परगट दूषन देखि यै, इसमै कौन विचार // 25|| कलपि विकलपी कहतु है, और दोष विकराल ? निर्मल केवलिनाथ के, है निहार मलजाल // 26 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.269051
Book TitleHemaraj Pandes Caurasi Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanabh S Jaini
PublisherZ_Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_1_002105.pdf and Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_2
Publication Year2004
Total Pages5
LanguageEnglish
ClassificationArticle & Literature
File Size381 KB
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