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________________ Hemaraj Pande's Caurasi Bol 387 तहां भयो इनको अंकुरौ, क्रम क्रम बढत बढत हुवपूरौ / कहवति कौं यह जैन कहावै, भोजन सविस नाम ज्यौं पावै // 8 // जो नर नाहि वस्तु का खोजी, सो न सुमत अमृतरस भोजी। अंतरदृष्टि होइ घट जाकै, भेदबुद्धि परकासै ताकै // 9 // नोटया र॥१४॥ आकदुम्धू अर गोदुग्ध, इनमैं बडौ विवेक / एक घटावै दिष्टि की, तेज बढावै एक // 10 // कहा भयौ जौ पीत है, पीतल कनक न होइ / परगट करै निदग्ध लखि, मुगध न जानै सोइ // 11 / / कहत यथारथ सो लखै, जाकै होइ सुदिष्टि ! कहा लखै रवि कै उदय, जो नर अंध निकिष्टि // 12 // कहै सुनै कछ होत नहि, जाकै घट परकास। सोइ नर निज अक्ष सौं, लखै सुलक्ष विलास // 13 / / जौं कठोर पाषान परि, वरसै मूसलधार / तौ भी मेघ न करि सकै, कोमलता गुनसार // 14 // तावत ज्यौं प्रगट करै, अगनि सुदर्ब कुदर्छ / त्यौं ही बुध सत असत का, भेद कस्तु है सर्व // 15 // मँसि उठतु स्वान ज्यौं, दुर्जन सुनि सुनि बात / तौ भी सत्यारथ कहै सुधी सदा अवदात // 16 // कहा करै सविता पिता, सबही कौं सुख देइ / आधासीसी युक्त नर, सो दुख सहज लहेइ // 17 // यथारथ कल्पित कहै, जे नर अंध कुबुद्धि। बंधन करि भव वन भमहि, लहहि न कबहु न सुद्धि // 18 // वीतराग दूषनरहित, भूषन भूकुल (?) जास। जिस जग भूषन देव कै, कहहि अहार गरास / / 19 / / सवया इकतीसा केवली आहार करै मानत ही लागतु है दूषन अठारै महाप्रमाद मोहियै / / मोहकर्म नास कारि बीरज अनंत धारी ताहि भूख लगै ऐसे कहतन सोहिये / / भुंजत अनंत सुख भोजन सौं कौन काज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.269051
Book TitleHemaraj Pandes Caurasi Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanabh S Jaini
PublisherZ_Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_1_002105.pdf and Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_2
Publication Year2004
Total Pages5
LanguageEnglish
ClassificationArticle & Literature
File Size381 KB
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