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.. प्राराधक बनवानो मार्ग
प्रात्मतत्व- स्मरण विशुद्ध अंतःकरणमां थायछे आत्मतत्त्ववनु स्मरण विशुद्ध अंतःकरणमां थाय छे । अंतःकरणनी विशुद्धि दुष्कृतगर्दा अने सुकृतानुमोदनथी थाय छ ।
दुष्कृत परपीडारूप छे । तेनी तात्त्विक गर्दा त्यारे थाय छे के ज्यारे परपीडाथी उपार्जन करेलां पापकर्मने परोपकार वडे दूर करवानो वीर्योल्लास जागेछ । . परार्थकरणनो वीर्योल्लास ए ज परपीड़ाकृत पापनी साची गर्हाना परिणाम स्वरूप छ। दुष्कृत गर्हामां परार्थकरणनी वृत्ति छुपाएली छे । सुकृतानुमोदनमां परार्थकरणनु हार्दिक अनुमोदन छ । चतुःशरण गमनमां परार्थकरण स्वभाववाला आत्मतत्त्वनो आश्रय छ । ___ आत्मतत्त्व पोते ज परार्थकरण अने परपीड़ाना परिहार स्वरूप छे । आत्मानो ते मूल स्वभाव प्राप्त करवा माटे ज परपीड़ानु गर्हण अने परोपकार गुणर्नु अनुमोदन छ ।
शुद्ध स्वरूपने प्राप्त थयेला अरिहंतादि चार सर्वथा परार्थकरणोद्यत होय छे । तेथी ते स्वरूपनु शरण स्वीकारवा योग्य छ, आदरवा योग्य छे, उपासना करवा लायक छ । • शुद्ध आत्मतत्त्व हमेशां पोताना स्वभावथी ज शुद्धिकरणनु कार्य करे छे तेथी ते ज पुनः पुनः स्मरणीय छ, आदरणीय छ, ज्ञेय छे श्रद्धय छे अने ध्येय छ । सर्व भावथी शरण्य छे-शरण लेवा लायक छ । ____ ज्यांसुधी स्वकृत-पोतेकरेला दुष्कृतनी गर्दा थती नथी, एक नानु पण दुष्कृत गर्हाना विषय विनानु रहे छे, त्यां सुधी स्वपक्षपातरूपी रागदोषनो विकार विद्यमान छ एम समजवु। गर्हाना स्थाने अनुमोदना होवाथी ते मिथ्या छे, तेथी वास्तविक अनुमोदनानु स्थान जे पर सुकृत तेनी अनुमोदना पण साची थती नथी । __परकृत अल्प पण सुकृतनु अनुमोदन बाकी रही जाय छे त्यां सुधी अनुमोदनना स्थाने अनुमोदनना बदले उपेक्षा कायम रहे छे अने ते उपेक्षा पण एक प्रकारनी गर्दा ज बने छ । सुकृतनी गर्दा अने दुष्कृत अनुमोदन अंशे पण विद्यमान होय त्यां सुधी साचुं शरण प्राप्त थतुं नथी। दुष्कृतनुं अनुमोदन रागरूप छे अने सुकृतनुं गर्हण द्वेषरूप छे । तेना पायामां मोह या अज्ञान या मिथ्याज्ञान रहेलु छ । ____ए मिथ्याज्ञानरूपी मोहनीय कर्मनी सत्तामां अरिहंतादिनुं शुद्ध आत्म स्वरूप अोलखातुं नथी केमके ते रागद्वेष रहित छ ।
वीतराग प्रवस्थानी सूझ-बूझ रागद्वेष रहित शुद्ध स्वरूपनी साची अोलखाण थवा माटे दुष्कृत गर्दा अने सुकृतानुमोदन सर्वाश शुद्ध थर्बु जोईए । ए थाय त्यारे ज रागद्वेष रहित अवस्थावाननी साची