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श्री कापरड़ा स्वर्ण जन्यती महोत्सव ग्रन्थ
ए शरणागति परार्थभाव अने कृतज्ञता गुणने सानुबंध बनाववा माटेनु सामर्थ्यं पुरु पाडे छे, वीर्य वधारे छे, उत्साह जगाडे छे अने तेमनी जेम ज्यां सुधी पूर्णत्व प्राप्त न थाय अर्थात् ते बे गुणोनी क्षायिक भावे सिद्धि न थाय त्यां सुधी साधनामां विकास थतो रहे छे । तेने अनुग्रह पण कहेवाय छे। साधनामां उत्तरोत्तर विकास वधारी सिद्धि सुधी पहोंचाडनार श्रेष्ठ प्रकारना आलंबनो प्रत्ये प्रदरनो परिणाम अने तेथी प्राप्त थती सिद्धि ए तेमनो अनुग्रह गणाय छे। कह्य ं छे के :--
आलंबनादरोद्भूतप्रत्यूहक्षययोगतः । ध्यानाद्यारोहण शो, योगिनां नोपजायते ॥
-अध्यात्मसार
ऊँचे चढवामां आलंबनभूत थनारा तत्त्वो प्रत्ये आदरना परिणामथी सिद्धिनी आडे श्रावतां विघ्नोनो क्षय थाय छे अने ते विघ्नक्षयथी योगी पुरुषोने ध्यानादिना प्रारोहणथी भ्रंश थतो नथी ।
आलंबनोना आदरथी थता प्रत्यक्ष लाभने ज शास्त्रकारो अरिहंतादिनो अनुग्रह कहे छे ।
अरिहंतादि चारनुं श्रवलम्बन स्वरूपना बोधनं कारण छे
जे प्रलंबन लइने जीव आगल वधे छे तेनो उपकार हृदयमां न वसे तो ते पाछो पतनने पामे छे । एटले परार्थवृत्तिरूपी दुष्कृत गर्हा, कृतज्ञता गुणना पालन स्वरूप सुकृतानुमोदना अने ते गुणोनी सिद्धिने वरेला महापुरुषोनी शरणागति, ए त्रणे उपायो मलीने जीवनी मुक्तिगमन योग्यता विसावे छे अने भवभ्रमणनी शक्तिनो क्षय करे छे ।
साची दुष्कृत गर्दा अने सुकृतानुमोदना दुष्कृत रहित ने सुकृतवान तत्त्वोनी भक्ति साथे जोडायेली ज होय छे । तेथी एक भक्तिने ज मुक्तिनी दूती कहेली छे ।
कृतज्ञता गुण सुकृतनी अनुमोदना रूप छे । परार्थ वृत्तिदुष्कृतनी गर्हा रूप छे । दुष्कृतनी रूप परार्थ वृत्ति ने सुकृतनी अनुमोदनारूप कृतज्ञताभावथी विशुद्ध थयेल अंतःकरणमा शुद्धात्मतत्त्व प्रतिबिंब पड़े छे । शुद्ध आत्मताव अरिहंत, सिद्ध, साधु ने केवली कथित धर्मथी अभिन्नस्वरूपवालु छे ।
अरिहंतादि चार शरण गमन ए मुक्तिनु ं अनन्य कारण छे । मुक्ति ए स्वरूपला भरूप छे । स्वरूपनो बोध ए अरिहंतादि चारना अवलंबनथी थाय छे । अरिहंतादि चारनु अवलंबन स्वरूपना वोधनु कारण छे । श्रात्मामां आत्माथी श्रात्माने जागवानुं साधन अरिहंतादि चारनु ं शरण-स्मरण छे । ए चारनु स्मरण ए ज तत्त्वथी आत्मस्वरूप स्मरण छे ।
आत्मानु स्वरूप निश्चयथी परमात्म तुल्य छे, एवो बोध जेने थयेलो छे, तेने परमात्म स्मरण ए ज वास्तविक शरण गमन छे ।