________________
श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ
प्रसन्नता प्राप्त करी, 'कपट रहित थई आत्माने परमात्मामा समर्पित करवो अने आत्म-समर्पण समये बहिरात्मभावने दूर करी अंतरात्मामां स्थिर बनी परमात्म स्वरूप भावqएटले के अन्तरात्माने परमात्मरूपे ध्यावQ। 'जिनेश्वर रूप थइजे जिननी आराधना करे ते अवश्य जिन बने छ । __ आत्मा अने परमात्मा बने शुद्ध नयथी एकज छ । एम विचारता मतिभ्रम दूर थाय छे अने मतिभ्रम दूर थवाथी परम सम्पत्ति अने आनन्दघन रसनी पुष्टि थाय छ । अनाहत ए सम्यग् दर्शन, इच्छायोग, अध्यात्मयोग, भावनायोग, प्रोति प्रने
भक्ति प्रादि अनुष्ठाननो सूचक छ श्री सिद्धचक्रनी कर्णाकामा स्वर अने अनाहत सहित अर्ह - प्रथम आलेखन ए प्राथमिक अवस्थामां सर्वजीवोने इच्छायोग अने प्रीति-भक्ति आदि अनुष्ठानने सूचवे छ ।
अरिहंत परमात्मा प्रत्ये प्रथम प्रीति उत्पन्न थवी जोइए । एमनां नामस्मरण अने मूर्तिदर्शन वडे साधनानो मंगलमय प्रारंभ थाय छे । नाना बाळ जीवोने सर्वप्रथम श्री नमस्कार महामंत्र- रटण अने प्रभुदर्शन करवानुं शीखडाववामां आवे छे तेनी पाछल एज रहस्य छ, के तेओने प्रभु प्रत्ये प्रेम पेदा थाय, 'अरिहंते शरणं पवज्जामि' द्वारा प्रथम प्रभुनु शरण स्वीकारवान बतावी पछीज दुष्कृत गर्हा अने सुकृतानुमोदना करवानु विधान छ। ___ सम्यक्त्व प्राप्तिनां सर्व कारणोमां अरिहंतनी प्रीति अने भक्तिने प्रधान कारण (पुष्ट हेतु) मानवामां आव्युं छे । बाकीनी सर्व सामग्री गौण मनाइ छ ।
निमित्त हेतु जिनराज समता अमृत खाणी , प्रभु आलंबन सिद्धि नियमा एह वखाणी।
-देवचंदजी कृत अरनाथस्तवन उपादान आतम सहिरे, पुष्टालंबन देव ;
उपादान आतमपणेरे, प्रगट करे प्रभु सेव । अरिहंतनी प्रीति अने भक्ति ए योगनु बीज छे, मीत्रा दृष्टिवाला जीवो करता तारा, बला, अने दीप्रा, दृष्टिवाला जीवोनी अरिहंत प्रत्येनी प्रीति अने भक्ति अत्यंत गाढ होय छ ।
श्री अरिहंतादिनी भक्तिना योगे ध्यान शक्ति वधतां ग्रन्थी भेदन- सामर्थ्य प्रगटे छे, अने सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थतां ते प्रीति, भक्ति तात्त्विक बने छे, योग बिन्दु' ग्रन्थमा वर्णवायेल
१. चित्त प्रसन्ने रे पूजन फल का रे। -ऋषभदेव स्तवन
कपट रहित थई आतम अरपरणां। --सुमतिनाथ स्तवन २. जिन स्वरूप थई जिन आराधे ते सहि जिनवर होवेजी। -नमिनाथ स्तवन