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________________ महामंत्रनो अनुप्रेक्षा 'जेम नवपदोनी स्तुति करतां श्रीपाल पोतानां आत्माने नवपदमय जोता हता, तेम कोई पण साधक अरिहंतादिनी साथे तन्मय बने, तो ते पण अरिहंतादिमय बनी शके छ । कहयु छ के:- 'जिनस्वरूप थई जिन आराधे, ते सहि जिनवर होवेजी' ; प्रश्न :-अहिं कदाच एम शंका थाय के छद्मस्थ एवा ध्याताने (ध्यान करनारने) अरिहंत के सिद्ध केम कही शकाय ? उत्तर :-अरिहंत के सिद्धनु ध्यान करनार ध्याता भावनिक्षेपे आगमथी अरिहंत के सिद्ध कही शकाय, केमके अरिहंत के सिद्धपदनो ज्ञाता तेमां उपयोग वालो होय तो ते आगमथी भावनिक्षेपे अरिहंत के सिद्धज छ । परमात्मा-प्रभु साथे रसभरी प्रीति, तेमना स्वरूपमा तन्मय बनवाथी ज थई शके छ। प्रभ साथे तन्मय बनवाथी ज तेमनी पराभक्ति थाय छ । अरिहंतना प्रालंबनथी जीव आत्मावलंबी (स्वरूपावलंबी) बनी शके छ । 'जेम जिनवर आलंबने, वधे सधे एकतान हो मित्त ; तेम तेम पालंबनी ग्रहे, स्वरूप निदान हो मित्त' । जीव जेम जेम जिनवर ध्यान करी तेमा एकता साधे छे, तेम तेम ते आत्मावलम्बी बनी पोताना शुद्ध स्वरूपनु कारण (निदान) मेलवी शके छ, एटले के स्वभावरमणता प्राप्त करे छ । अने स्वभाव रमणता करतो जीव पूर्णानन्दस्वरूप ने प्राप्त करे छ । श्री सिद्धसेन दिवाकरसूरिजी पण 'कल्याणमन्दिर'मां अने 'जिनसहस्र नाम स्तोत्रमां' अभेद ध्याननु स्वरूप बतावतां कहे छ, के 'पंडित पुरुषो जिनेश्वरना स्वरूपनु ध्यान करी स्व आत्माने पण अभेदभावे ते स्वरूपे ज ध्यावे छ , ते जिनेश्वर बने छ । २जिनेश्वर ज दाता अने भोक्ता छ । सर्व जगत पण जिनमयज छ । जिनेश्वर सर्वत्र जय पामे छ । जे जिनेश्वर छ , ते हुं पोतेज छु। वली अनुभवी योगी श्री आनन्दघनजी म० प्रभु साथै तन्मयता केलवानो उपाय दर्शावे छ, के अरिहंत देवनी द्रव्य पूजा, स्तोत्र पूजा आदि द्वारा चित्तनी १. एम नव पद थुणतो तिहा लीनो, हो तन्मय श्रीपाल... ... .. -श्रीपाल रास २. प्रात्मा मनीषिभिरयं, त्वदभेद बुध्या । ध्यातो जिनेन्द्र भवतीह भवत्प्रभावः ॥१७॥ -कल्याण मन्दिर ३. जिनो दाता जिनो भोक्ता, जिनः सर्वमिदं जगत् । जिनो जयति सर्वत्र, यो जिनः सोऽहमेव च ॥ -जिन सहस्त्रनामस्तोत्र
SR No.249684
Book TitleAradhak Banvano Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherBhadrankarvijay
Publication Year
Total Pages64
LanguageGujarati
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size5 MB
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