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________________ अनाहतनु स्वरूप ब्रह्मरंध्रभां प्रवेश निराकार परमात्मस्वरूपना चिंतनथी थाय छ । माटे ते वखते बहिरात्मभाव अने अंतरात्मभावने गौण करी पोताना आत्माने परमात्मस्वरूप मानी तेनु ज घ्यान योगी पुरुषो करे छे । (श्लोक-१२८) अनाहत नवपदोन अंग छ श्री सर्वज्ञ सर्वदर्शी अनंत उपकारी जिनेश्वर भगवंते बतावेल मोक्ष मार्गमा सर्वप्रकारना योगोनो समावेश थयेलो छ । कयु छे के: "योग असंख्य जिन कह्यां, नवपद मुख्य ते जाणो रे ; एह तणे अवलंबने, प्रातम ध्यान प्रमाणो रे ॥" आ रीते जैन दर्शनमा विस्तारथी योगोना असंख्य प्रकार बताववामां पात्या । छतां संक्षेपथी' एक, बे, त्रण, चार, पांच, छ अने नव आदि प्रकारो भिन्न भिन्न अपेक्षाए दर्शाव्या छ । तेमां पण नवपदनी आराधनामां समग्र जिनशासननी आराधनानो समावेश थई जाय छ । केमके नवपदमय श्रीसिद्धचक्रमां बे प्रकारनी रत्नत्रयी (देव, गुरु, धर्मरूप अने सम्यगदर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप) रहेली छ । अर्थात् विश्वमां एवो कोई योग के योगनु अंग नथी के जेनो नवपदमां समावेश न थतो होय । पा रीते विचारतां अनाहत पण नवपदोनु अंग छे, नवपदना अनुभवी आराधकने तेनो साक्षात् अनुभव थई शकशे । प्रत्यक्ष-प्रभावी एवा श्रीसिद्धचक्र बृहयंत्रमा त्रणवार आलेखन थयेल अनाहतन अद्भुत रहस्य समजवा शक्य प्रयास करीए तो आजे पण महायंत्रमा रहेला योगना अनपम गुप्त रहस्योनो आछो ख्याल जरूर आवी शके। महायंत्रमा प्रथमवलयनी कणिकामां आवेला 'ह्र " पदने 'ॐ ह्रीं" स्वर अने 'अनाहत' बडे वेष्टित करवामां आव्य छे, तेनु गुप्त रहस्य शु छ ? ते प्रथम विचारीए । ॐ ह्री स्फुटानाहतमूलमंत्रं, स्वरैः पटीतं ..... एक प्रकार-सम्यग प्राचार । बे प्रकार-सर्व विरति-देश विरति अथवा ज्ञान क्रिया। त्रण प्रकारसम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र । चार प्रकार-ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप, अथवा दान, शील, तप, भाव । पांच प्रकार-पांच महाव्रत । छ प्रकार-पांच महाव्रत अने छड्डु रात्रि भोजन त्याग । नवप्रकार-नवपद।
SR No.249684
Book TitleAradhak Banvano Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherBhadrankarvijay
Publication Year
Total Pages64
LanguageGujarati
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size5 MB
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