SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ घंटानादनां दृष्टांत द्वारा तेनो अस्खलित गतिए चालतो प्रवाह अने ते प्रवाहमा लयलीन बनेलो आत्मा खरेखर योगनो अनुभवी छे, एम बतावेल छ । ___ सर्व जीवोना हृदयमां स्थित थयेलो ते अनाहतनाद अव्यक्तपणे-गुप्तरीते चालतो ज (संचरतो ज) होय छे । तेथी प्रगट रीते संभळातो नाद ए अनाहत नाद नथी (श्लोक११८)। ते नाद सर्व देह व्यापी होवा छतां नासिकानां अग्रभाग उपर व्यवस्थित होय छे । तेम ज ते नाद सर्व प्राणीप्रोने देखातो नथी पण ध्यानना अभ्यासीनोने, ज ते लक्ष्यमा प्रावी शके छ । धर्मध्यानना सतत अभ्यास पछी ज अनाहत नादनो प्रारंभ थाय छे । तेथी ध्यानना प्राथमिक अभ्यासीने के मंद अभ्यासीने नादवें स्वरूप प्रत्यक्ष न थाय ते संभवित छ । अनाहत नादना अनहद अानंद ने अनुभववा माटे गुरुगमथी सतत अभ्यास करवो जोइए, ते आ श्लोकन तात्पर्य छ। ___ शब्दध्वनिथी रहित, विकल्परूप तरंग विनानुं अने समभावमां स्थिर थएलुचित्त, ज्यारे सहज अवस्थाने पामे छे, त्यारे ते चित्तवडे अनाहतनादनो प्रारंभ थाय छे । (श्लो०-१२०). पदस्थ (अक्षर) पिंडस्थ, रुपस्थ ध्यानमां अक्षर के आकृतिनुं आलंबन लेवू पडे छे, माटे तेने सालंबन ध्यान कहेवामां आवे छे। सालंबन ध्यानमा सविकल्प दशा होय छे अने ते अनेक प्रकारे थई शके छे। योगशास्त्रादि ग्रंथोमां बतावेला सालंबन ध्यानना प्रकारोमांथी कोइपण प्रकारनो सतत अभ्यास करवामां आवे, तो सालंबन ध्याननी परिपक्व अवस्थामां तेना फळरूपे अनाहत नादनो प्रारंभ थाय छे । अक्षरमांथी अनाहत-नादरुप अक्षरता प्रगटे छ । स्थूल आकृतिनां बदले अत्यंत सूक्ष्म अनाहतनादनु ज आलंबन होय छ। तेथी (ते अर्थमा) तेने अनक्षर ध्यान के निरालंबन ध्यान कहेवामां वांधो नथी। जे वखते चित्त समभावमां झीलतु होइने सहज अवस्थाने पामे छे, ते वखते अनाहतनादनो प्रारंभ थाय छ। अनाहतनादन ध्यान नित्य नियमित करवाथी अनुक्रमे ते निर्मळ बनतुं जाय छे । अने ज्यारे साधक योगीने अभ्यासवडे अनाहतनादनुं ध्यान शुद्ध थाय, त्यारे ते निराकार एवा ब्रह्मरंध्रमां मनने स्थापित करे छ । (श्लो०-१२१) आ प्रमाणे परोपकारी पूर्वाचार्योए स्वानुभवपूर्वक प्रात्मासाक्षात्कार करवानी चावीओ बतावेली छ । प्राथमिक अवस्थामा स्थूल आलंबन द्वारा ध्यानाभ्यासनो प्रारंभ करवो जोइए । ते सिद्ध थतां सूक्ष्म, क्ष्मतर आलंबन लेवु जोइए । तेना सतत अभ्यासथी 'अनाहत' नादनो आविर्भाव थाय छे, अने अनाहतनादनी सिद्धि थतां द्वादशांत ब्रह्मरंध्रमां प्रवेश थई शके छे।
SR No.249684
Book TitleAradhak Banvano Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherBhadrankarvijay
Publication Year
Total Pages64
LanguageGujarati
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy