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________________ || 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी वस्त्रावृत होकर, अपनी भुजाएँ नीचे लटकाकर, दोनों पैरों को समतल कर इस स्थिति में खड़े होकर आतापना लेना कल्पता है। (iii) साध्वी को खडे होकर कायोत्सर्ग करने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। (iv) साध्वी को (एक रात्रिक आदि) प्रतिमाओं के आसनों में स्थित होने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। (v) साध्वी को निषद्याओं-बैठकर किये जाने वाले आसन विशेषों में स्थित होना नहीं कल्पता है। (vi) साध्वी को उत्कुटुकासन में स्थित होने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। (vii) साध्वी को वीरासन, दण्डासन, लकुटासन में अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। (viii) साध्वी को अधोमुखी (अवाङ्मुखी) स्थित होने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। (ix) साध्वी को मुँह ऊँचा कर सोने के अभिग्रह में स्थित होना नहीं कल्पता। (x) साध्वी को आम्र कुब्जासन में स्थित होने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता। (xi) साध्वी को एक पार्श्वस्थ होकर सोने का अभिग्रह कर स्थित होना नहीं कल्पता है। (बृहत्कल्पसूत्र) 15. साध्वियों के लिये आकुंचन पट्टक धारण का निषेध साध्वियों के लिए आकुंचन पट्टक धारण करना और उपयोग में लेना नहीं कल्पता है, साधुओं के लिए आकुंचन पट्टक रखना और उसका उपयोग करना कल्पता है।(बृहत्कल्पसूत्र) 16. सहारे के साथ बैठने का विधि-निषेध साध्वियों को आश्रय या सहारा लेकर बैठना या करवट लेना (सोना) नहीं कल्पता है। जबकि साधुओं को अवलम्बन या सहारा लेकर बैठना या करवट लेना कल्पता है। (बृहत्कल्पसूत्र) 17. शृंगयुक्त पीठ आदि के उपयोग का विधि-निषेध साध्वियों को शृंगाकार युक्त कंगूरों सहित पीढे या पट्ट पर बैठना या करवट बदलना नहीं कल्पता, जबकि साधुओं को यह सब कल्पता है। (बृहत्कल्पसूत्र) 18. सवृन्त तुम्बिका रखने का विधि-निषेध साध्वियों को डण्ठलयुक्त तुम्बपात्र रखना एवं उसका उपयोग करना नहीं कल्पता, जबकि साधुओं को डण्ठल सहित तुम्बपात्र रखना एवं उसका उपयोग करना कल्पता है। (बृहत्कल्पसूत्र) 19.सवृन्त पात्र केशरिका रखने का विधि-निषेध ___ साध्वियों को सवृन्त पात्र प्रमार्जनिका रखना एवं उसका उपयोग करना नहीं कल्पता है, जबकि साधुओं को सवृन्त पात्र प्रमार्जनिका रखना और उसका उपयोग करना कल्पता है। (बृहत्कल्पसूत्र) 20. दण्डयुक्त पाद प्रोञ्छन का विधि-निषेध साध्वियों को दण्डयुक्त पादपोंछन रखना एवं उसको उपयोग में लेना नहीं कल्पता, जबकि साधुओं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229987
Book TitleShraman evam Shramani ke Achar me Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Munot
PublisherZ_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf
Publication Year2011
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size1 MB
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