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________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 101 अवस्थायें साधक हैं, इनमें प्रत्यक्ष-परोक्ष का भेद है । ये सब अवस्थायँ एक जीव की हैं। ऐसा जानने वाला ही सम्यग्दृष्टि होता है । " सहजकीर्ति गुरु के दर्शन को परमानन्ददायी मानते हैं- 'दरशन अधिक आणंद जंगम सुर तरुकंद ।' उनके गुण अवर्णनीय हैं- 'वरणवी हूँ नवि सकूं।" जगतराम ध्यानस्थ होकर अलख निरंजन को जगाने वाले सद्गुरु पर बलिहारी हो जाता है।" और फिर सद्गुरु के प्रति 'ता जोगी चित लावो मोरे वालो' कहकर अपना अनुराग प्रगट किया है।” वह शील रूप लंगोटी में संयम रूप डोरी से गाँठ लगाता है, क्षमा और करुणा का नाद बजाता है तथा ज्ञान रूप गुफा में दीपक संजोकर चेतन को जगाता है। कहता है, रे चेतन, तुम ज्ञानी हो और समझाने वाला सद्गुरु है तब भी तुम्हारे समझ में नहीं आता, यह आश्चर्य का विषय है । सद्गुरु तुमहिं पढ़ावै चित दै अरु तुमहू हौ ज्ञानी, तबहूं तुमहिं न क्यों हू आवै, चेतन तत्त्व कहानी ।" पांडे हेमराज का गुरु दीपक के समान प्रकाश करने वाला है तथा वह तमनाशक और वैरागी है ।" उसे आश्चर्य है कि ऐसे गुरु के वचनों को भी जीव न तो सुनता है और न विषयवासना तथा पापादिक कर्मों से दूर होता है।" इसलिए वह कह उठता है-सीष सगुरु की मानि लै रै लाल । " रूपचन्द की दृष्टि में गुरु कृपा के बिना भवसागर से पार नहीं हुआ जा सकता ।" ब्रह्म उसकी ज्योति में अपनी ज्योति मिलाने के लिए आतुर दिखाई देते हैं- 'कहै ब्रह्मदीप सजन सुमझाई करि जोति में जोति मिलावै ।" ब्रह्मदीप के समान ही आनंदघन ने भी 'अबधू' के सम्बोधन से योगी गुरु के स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है।" भैया भगवतीदास ने ऐसे ही योगी सद्गुरु के वचनामृत द्वारा संसारी जीवों को सचेत हो जाने के लिए आह्वान किया है एतो दुःख संसार में, एतो सुख सब जान । इति लखि भैया चैतिये, सुगुरुवचन उर आन ॥" मधुबिन्दुक की चौपाई में उन्होंने अन्य रहस्यवादी सन्तों के समान गुरु के महत्त्व को स्वीकार किया है। उनका विश्वास है कि सद्गुरु के मार्गदर्शन के बिना जीव का कल्याण नहीं हो सकता, पर वीतरागी सद्गुरु भी आसानी से नहीं मिलता, पुण्य के उदय से ही ऐसा सद्गुरु मिलता है Jain Educationa International 'सुअटा सोचै हिए मझार। ये गुरु सांचे तारनहार ॥ मैं शठ फिरयोकर वन मांहि । ऐसे गुरु कहुं पाए नाहिं | अब मो पुण्य उदय कुछ भयो । सांचे गुरु को दर्शन लयो । " 24 For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229958
Book TitleJain Sadhna me Sadguru ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherZ_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf
Publication Year2011
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
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