________________ अन्तर्मन की ग्रंथियाँ खोलें ] [ 131 मूल समस्या है दृष्टि विकास की। यह विकास समता दर्शन की गूढ़ता में रंग कर ही साधा जा सकेगा। दष्टि इस रूप में विकसित होगी तभी सामर्थ्य रूप में ममता से हटने पर ही दृष्टि विकास का कार्यारंभ हो सकेगा / स्वरूप दर्शन से परिवर्तन की प्रेरणा मिलती है। एक दर्पण को इतना स्वच्छ होना चाहिये कि उसमें कोई भी आकृति स्पष्टता से प्रतिबिम्बित हो सके / किन्तु कोई दर्पण ऐसा है या नहीं-उसे देखने से ही ज्ञात होगा / यथावत देखने से जब मैला रूप दिखाई देगा तो उसे धो-पोंछ कर साफ बना लेने की प्रेरणा भी फूटेगी / विकासोन्मुख होने की पहली सीढ़ी स्वरूप-दर्शन है चाहे वह निजात्मा का हो या विश्व का। स्वरूप दर्शन से स्वरूप-संशोधन की ओर चरण अवश्य बढ़ते हैं और समुच्चय में समता दर्शन का यही सुफल है / कर्मन की रेखा न्यारी रे . [राग मांड] कर्मन की रेखा न्यारी रे, विधि ना टारी नांहि टरै। रावण तीन खण्ड को राजा, छिन में नरक पड़े। छप्पन कोट परिवार कृष्ण के, वन में जाय मरे / / 1 / / हनुमान की मात अन्जना, वन-वन रुदन करै। भरत बाहुबलि दोऊ भाई, कैसा युद्ध करै / / 2 / / राम अरु लक्ष्मण दोनों भाई, सिय के संग वन में फिरै। सीता महासती पतिव्रता, जलती अग्नि परे // 3 / / पांडव महाबली से योद्धा, तिनकी त्रिया को हरे / कृष्ण रुक्मणी के सुत प्रद्युम्न, जनमत देव हरै / / 4 / / को लग कथनी कीजै इनकी, लिखतां ग्रन्थ भरै। धर्म सहित ये करम कौनसा, 'बुधजन' यों उचरे // 5 // -बुधजन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org