________________ 106 ] [ कर्म सिद्धान्त ने उसी दिन से अच्छा पुरुषार्थ करना प्रारम्भ कर दिया और उसका भविष्य अच्छा हो गया। सुकरात के सामने एक व्यक्ति आकर बोला-"मैं तुम्हारी जन्म-कुंडली देखना चाहता हूँ।" सुकरात बोला-"अरे ! जन्मा तब जो जन्म-कुंडली बनी थी, उसे मैं गलत कर चुका हूँ। मैं उसे बदल चुका हूँ। अब तुम उसे क्या देखोगे ?" पुरुषार्थ के द्वारा व्यक्ति अपनी जन्म-कुडली को भी बदल देता है। ग्रहों के फल-परिणामों को भी बदल देता है, भाग्य को बदल देता है। इस दष्टि से मनुष्य का ही कर्तृत्व है, उत्तरदायित्व है। दूसरे शब्दों में पुरुषार्थ का ही कर्तृत्व है और उत्तरदायित्व है। महावीर ने पुरुषार्थ के सिद्धान्त पर बल दिया, पर एकांगी दृष्टिकोण की स्थापना नहीं की। उन्होंने सभी तत्त्वों के समवेत कर्तृत्व को स्वीकार किया, पर उत्तरदायित्व किसी एक तत्त्व का नहीं माना। भगवान् महावीर के समय की घटना है। शकडाल नियतिवादी था। भगवान् महावीर उसके घर ठहरे। उसने कहा-"भगवन् ! सब कुछ नियति से होता है। नियति ही परम तत्त्व है।" भगवान महावीर बोले-"शकडाल ! तुम घड़े बनाते हो / बहुत बड़ा व्यवसाय है तुम्हारा / तुम कल्पना करो, तुम्हारे आवे से अभी-अभी पककर पाँच सौ घड़े बाहर निकाले गए हैं / वे पड़े हैं। एक आदमी लाठी लेकर आता है और सभी घड़ों को फोड़ देता है। इस स्थिति में तुम क्या करोगे ?" शकडाल बोला-"मैं उस आदमी को पकड़ कर मारूंगा, पीहूँगा।" महावीर बोले-"क्यों।" शकडाल ने कहा-"उसने मेरे घड़े फोड़े हैं, इसलिए वह अपराधी है।" महावीर बोले-"बड़े आश्चर्य की बात है। सब कुछ नियति करवाती है / वह आदमी नियति से बंधा हुआ था। नियति ने ही घड़े फुड़वाए हैं / उस आदमी का इसमें दोष ही क्या है ?" ___ यह चर्चा आगे बढ़ती है और अन्त में शकडाल अपने नियति के सिद्धान्त को आगे नहीं खींच पाता, वह निरुत्तर हो जाता है। पुरुषार्थ का अपना दायित्व है। कोई भी आदमी यह कहकर नहीं बच सकता कि मेरी ऐसी ही नियति थी। हमें सचाई का, यथार्थता का अनुभव करना होगा। ___इस चर्चा का निष्कर्ष यह है कि अप्रमाद बढ़े और प्रमाद घटे, जागरूकता बढ़े और मूर्छा घटे / पुरुषार्थ का उपयोग सही दिशा में बढ़े और गलत दिशा में जाने वाला पुरुषार्थ टूटे / हम अपने उत्तरदायित्व का अनुभव करें। . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org