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|प्रकीर्णक-साहित्य : एक परिचय
463] प्रकीर्णक माने जाते है:- १. चतु:शरण २. आतुरप्रत्याख्यान ३. महाप्रत्याख्यान ४. भक्तपरिज्ञा ५. नन्दलवैचारिक ६. संस्तारक ७. गच्छाचार ८. गणिविद्या ५. देवेन्द्रस्तत १०. मरणसमाधि ।
__मुनि पुण्यविजय ने चार अलग-अलग सन्दर्भो में प्रकीर्णकों की अलग-अलग सूचियाँ प्रस्तुत की हैं। कुछ ग्रन्थों में गन्छाचार और गरण समाधि के स्थान पर चन्द्रवंध्यक और वीरस्तत्र को गिना गया है, कहीं भक्तपरिज्ञा के स्थान पर चन्दवेध्यक को गिना गया है। इसके अतिरिक्त एक ही नाम के अनेक प्रकीर्णक भी उपलब्ध होते हैं यथा 'आउर पन्चक्रवाणं' आतुर प्रत्याख्यान के नाम से तीन ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं।
मुनि पुण्यविजय के अनुसार प्रकीर्णक नाम से अभिहित २२ ग्रन्थ हैं:---(१) चतु:शारण (२) अन्तु प्रत्याख्यान (३) भक्तपरिज्ञा (४) संस्तारक (५) नंदलवैचारिक (६) चन्द्रवेध्यक (७) देवेन्द्रस्तव (८) गणिविद्या (९) महाप्रत्याख्यान (१०) वीरस्तव (११) ऋषिभाषित (१२) अजीवकल्प (१३) गच्छाचार (१४) नरणसमाधि (१५) तीर्थोद्गालिक (१६) आराधनापताका (१७)द्वीपसागरप्रज्ञप्ति (१८) ज्योतिष्करण्डक (१९) अंगविद्या (२०) सिद्धप्राभृत (२१) सारावली (२२) जीवविभक्ति
- नंदी और पाक्षिकसूत्र में उत्कालिक सूत्रविभाग में देविंदत्थय, तंदुलवेयालिय, चंदावेज्झाय, गणिविज्जा, गरणविपत्ति मरणसमाहि, आउरपच्चक्खाण, महापच्चक्खाण, ये सात नाम और कालिक सूत्रविभाग में इसिभासियाई, दीवसागरपण्णति ये दो नाम इस प्रकार ९ नाम पाये जाते हैं। कतिपय प्रमुख प्रकीर्णकों का परिचय प्रस्तुत हैं:1.देविदत्थओ- देवेन्द्रस्तव :
मंदिसूत्र और पाक्षिक सूत्र में निर्दिष्ट देवेन्द्रस्नव कुल ३११ गाथाओं में निबद्ध है। अत्यन्त ऋद्धि सम्पन्न देवगण भी सिद्धों की स्तुति करते हैं यही इस ग्रन्थ का सारांश है। संवत् ११.८० में रचित आचार्य श्री यशोदेवसूरि कृत पाक्षिकवृत्ति में इसका परिचय उपलब्ध है :--- 'देविंदत्थओ नि देवेन्द्राणां चमरवैरोचनादीनाम् स्तवन- भवन-स्थित्यादि स्वरूणदिवर्णनं यत्रासौ देवेन्द्रस्तव इदि।'' देवलोकों का वर्णन और इन्द्रों द्वारा स्तुत्य इस प्रकार समासविग्रह परत दोनों विषयों का वर्णन इस ग्रन्थ में है। विषयवस्तु:-श्रमण भगवान महावीर स्वामी के समय में शास्त्रज्ञाता कोई श्रावक अपने घर में प्रात: स्तुति करता है और उसकी पत्नी हाट जोड़े सुनती है . श्रावक के वक्तव्य में बत्तीस देवेन्द्र आते हैं जिन्हें लक्ष्य कर श्रावक पत्नी देवेन्द्रों के नाम. रथान, स्थिति, भवनपरिग्रह, विमान सख्या भवन संख्या. नगर संख्या, पृशो बाहुल्या, भवनादि की ऊंचाई, विमानों के वर्ण, आहार
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