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| उत्तराध्ययनसूत्र में विनय का विवेचन ..
को 349 उत्तराध्ययन की 'मूल' संज्ञा
अंगशास्त्र की सारगर्भित वाणी का कथन करने के बाद प्रभु महावीर ने मोक्ष जाने के पूर्व उत्तराध्ययन सूत्र के अन्तर्गत पचपन पाप-विपाक, पचपन पुण्यविपाकों का वर्णन करते हुए छत्तीसवें अध्ययन में मरुदेवी माता का उल्लेख करते हुए परिनिर्वाण प्राप्त किया है। उत्तराध्ययन सूत्र प्रभु महावीर की अन्तिम वाणी है. इसलिए इस सत्र में सारभुत चार अनयोगों का कथन है, मात्र धर्मकथानुयोग का ही नहीं। उनराध्ययन सूत्र की बारह सौ वर्षों नक मूल सूत्र में गणना नहीं की जाती थी। इसके पश्चात इसे मूल सूत्र में गिना जाने लगा। उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दी और अनुयोगद्वार- ये चार सूत्र ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप रूप मूलगुण-साधना का वर्णन करने वाले हैं। इस दृष्टि से आचार्यों ने इन्हें मूल रूप में मूलसूत्र की संज्ञा दी हो, ऐसा लगता है।
आचार्य भगवन्त (श्री हस्तीमल जी म.सा.) की भाषा में कहूँ तो उत्तराध्ययन सूत्र जैन धर्म की गीता है। वैदिक परम्परा में जो स्थान गीता का है, इस्लाम परम्परा में जो स्थान कुरान का है, ईसाई मत में जो स्थान बाइबल का है, बौद्ध परम्परा में जो स्थान धम्मपद का है, वहीं स्थान जैन धर्म में उत्तराध्ययन सत्र का है। इस सत्र में जीवन के आदिकाल से अन्तकाल तक, विनय से लेकर जीव-अजीव का भेदकर मोक्ष जाने तक का सरल सुत्बोध
शैली में वर्णन उपलब्ध है। अतः इसे जैन धर्म की गीता के नाम से कहा जा रहा है। इसका एक-एक सूत्र जीवन में उतारने लायक है। उत्तराध्ययन सूत्र संजीवनी बूटी है। संजीवनी जैसे सम्पूर्ण रोगों का निकन्दन कर सकती है, ऐसे ही विकारों के शमन के लिए उत्तराध्ययन संजीवनी है।
भगवान की इस अनमोल वाणी उनराध्ययन सूत्र का आदि अध्ययन 'विनय' है। शास्त्र के मूल शब्द सामने रख रहा हूँ--
संजोगा विणमुक्कस्स, अणगारस्स मिक्खुणो।
तिणय पाउकरिस्सामि, आणुपुचि सुणेह मे।। अर्थात् जो संयोग से मुक्त एवं अनपार है, उस भिक्षाजीवी साधु के विनय को प्रकट करूँगा।
तीर्थकर भगवान महावीर द्वारा आगम की अर्थरूप में वागरणा की गई। उस वाणी को गणधरों ने सूत्र रूप में गुम्फित किया। सूत्र कहलाता ही वह है जिसमें सार भाग अधिक होता है। शब्द थोड़े, अर्थ अधिक। विनय का महत्त्व
भगवान महावीर मोक्ष के साधनरूप ज्ञान-दर्शन-चारित्र का प्रथम कथन करने की बजाय पहले विनय का कथन करने की बात कह रहे हैं। ऐरण क्यों? शास्त्र कहता है. - विनय गुणों का आधार है। विनय ही ज्ञान, दर्शन, चारित्र की प्राप्ति का आधारभूत गुण कहा गया है। एक शब्द में कहें
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