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| अन्तकृतदशासूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन ..
205 निग्यावलिका, प्रश्नव्याकरण, उत्तराध्ययन प्रभृति आगमों में उनका यशस्वी व तेजस्वी व्यक्तित्व उजागर हुआ है। आगमिक व्याख्या-साहित्य में नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य और टीका ग्रंथों में उनके जीवन से संबंधित अनेक घटनाएँ हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के मूर्धन्य मनीषियों ने कृष्ण के जीवन्त प्रसंगों को लेकर शताधिक ग्रंथों की रचनाएँ की हैं। भाषा की दृष्टि से वे रचनाएँ प्राकृत, अपभ्रंश. संस्कृत. पुरानी गजराती, राजस्थानी व हिन्दी भाषा में हैं।
प्रस्तुत आगम में श्रीकृष्ण का चहुंमुखी व्यक्तित्व निहारा जा सकता है। वे तीन खण्ड के अधिपति होने पर भी माता-पिता के परमभक्त हैं। माता टेवको की अभिलाषापूर्ति के लिए वे हरिणगमेषी देव की आराधना करते हैं। भाई के प्रति भी उनका अत्यन्त स्नेह है। भगवान अरिष्टनेमि के प्रति भी अत्यन्त निष्ठावान हैं। जहाँ एक ओर वे रणक्षेत्र में असाधारण वीरता का परिचय देकर रिपुमर्दन करते हैं, वज्र से भी कठोर प्रतीत होते हैं, वहीं दूसरी ओर एक वृद्ध व्यक्ति को देखकर उनका हृदय अनुकम्पा से द्रवित हो जाता है और उसके सहयोग के लिए स्वयं भी ईंट उठा लेते हैं। द्वारिका विनाश की बात सुनकर वे सभी को यह प्रेरणा प्रदान करने हैं कि भगवान् अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या ग्रहण करो। दीक्षितों के परिवार के पालन-पोषण आदि की व्यवस्था मैं करूँगा। स्वयं को महारानियाँ, पुत्र-पुत्रियाँ और पौत्र जो भी प्रव्रज्या के लिए तैयार होते हैं उन्हें वे सहर्ष अनुमति देते हैं। आवश्यकचूर्णि में वर्णन है कि वे पूर्णरूप से गुणानुरागी थे। कुत्ते के शरीर में कुलबुलाते हुये कीड़ों की ओर दृष्टि न डालकर उसके चमचमाने हुए टांतों की प्रशंसा की, जो उनके गुणानुराग का स्पष्ट प्रतीक है।
प्रस्तुत आगम के पाँच वर्ग तक भगवान् अरिष्टनेमि के पास प्रवजित होने वाले साधकों का उल्लेख है। भगवान अरिष्टनेमि बाईसवें तीर्थकर हैं। यद्यपि आधुनिक इतिहासकार उन्हें निश्चित तौर पर ऐतिहासिक पुरुष नहीं मानते हैं, किन्तु उनकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। जब उस युग में होने वाले श्रीकृष्ण को ऐतिहासिक पुरुष माना जाता है तो उन्हें भी ऐतिहासिक पुरुष मानने में संकोच नहीं होन चाहिए।
जैन परम्परा में ही नहीं, वैदिक परम्परा में भी अरिष्टनेमि का उल्लेख अनेक स्थलों पर हुआ है। ऋावेद में अरिष्टनेमि शब्द चार बार आया है।" "स्वस्ति नस्तायो अरिष्टनेमिः।" यहाँ पर अरिष्टनेमि शब्द भगवान अग्टिनेमि के लिए ही आया है। इसके अतिरक्त भी ऋग्वेद के अन्य स्थलों पर 'तार्क्ष्य अरिष्टनेमि का वर्णन है। यजुर्वेद और सामवेद में भी भगवान अरिष्टनेमि को तार्य अरिष्टनेमि लिखा है जो भगवान का ही नाम होना चाहिए। उन्होंने राजा सगर को मोक्षमार्ग का जो उपदेश दिया . बह जैनधर्म
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