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.... जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क | ज्ञाताधर्मकथा की विभिन्न कथाओं में जो भौगोलिक विवरण प्राप्त होता है वह प्राचीन भारतीय भूगोल के लिए विशेष उपयोग कः है। राजगृहीं, चम्पा , वाराणसी, द्वारिका, मिशिला, हस्तिनापुर , साकेत, मथुरा, श्रावस्ती आदि प्रमुख प्राचीन नगरों के वर्णन काव्यात्मक दृष्टि से जितने महत्त्व के हैं, उतने ही भौगोलिक दृष्टि से भी। राजगृह के प्राचीन नाम गिरिव्रज, वसुमति, बहंद्रतजुरी, मगधपुर, बराय, वृषभ, ऋषिगिरी, चैत्यक बिम्बसारपुरी और कुशानपुर थे। बिम्बसार के शासनकाल में राजगृह नगरी में
आग लग जाने से वह जल गई इसलिए राजधानी हेतु नवीन राजगृह का निर्माण करवाया। इन नगरों में परस्पर आवागमन के मार्ग क्या थे और इन्की स्थिति क्या थी, इसकी जानकारी भी एक शोधपूर्ण अध्ययन का विषय बनती है। विभिन्न पर्वतों, नदियों, वनों के विवरण भी इस ग्रन्थ में उपलब्ध हैं। कुछ ऐसे नगर भी हैं, जिनकी पहचान अभी करना शेष है। सामाजिक धारणाएँ
इस ग्रन्थ में सामाजिक रीतिरिवाजे, खान--पान, वेशभूषा एवं धार्मिक तथा सामाजिक धारणाओं से संबंधित सामग्री भी एकत्र की जा सकती है। महारानी धारिणी की कथा में स्वप्नदर्शन और उसके फल पर विपुल सामग्री प्राप्त है। जैनदर्शन के अनुसार स्वप्न का मूल कारण दर्शनमोहनीय कर्म का उदय है। दर्शनमोह के कारण मन में राग और द्वेष का स्पन्दन होता है, चित्त चंचल बनता है। शब्द आदि विषयों से संबंधित स्थूल
और सूक्ष्म विचार-तरंगों से मन प्रकंपित होता है। संकल्प--विकल्प या विष्योन्मुखी वृत्तियां इतनी प्रबल हो जाती हैं कि नींद आने पर भी शांति नहीं होती। इन्द्रियाँ सो जाती हैं, किन्तु मन की वृत्तियां भटकती रहती हैं। वे अनेक विषयों का चिन्तन करती रहती हैं। वृत्तियों की इस प्रकार की चंचलता ही स्वप्न है। आचार्य जिनसेन ने स्वस्थ अवस्था वाले और अस्वस्थ अवस्था वाले ये दो स्वप्न के प्रकार माने हैं। जब शरीर पूर्ण स्वस्थ होता है तो मन पूर्ण शांत रहता है, उस समय जो स्वप्न दीखते हैं वे स्वस्थ अवस्था वाले स्वप्न हैं। ऐसे स्वप्न बहुत ही कम आते हैं और प्राय: सत्य होते हैं। मन विक्षिप्त हो और शरीर अस्वस्थ हो उस समय देखे गये स्वप्न असत्य होते हैं
"ते च स्वप्ना द्विधा म्नाता स्वस्थास्वस्थात्मगोचरा., समैस्तु धातुभिः स्वस्वविषमैरितरैमता। तथ्या स्युः स्वस्थसंदृष्टा मिथ्या स्वप्ना विपर्ययात्,
जगत्प्रतीतमेतद्धि विद्धि स्वप्नविमर्शनम्।।" - महापुराण 41--59/60
इसी प्रकार धारिणी के दोहट की भी विस्तृत व्याख्या की जा सकती है। उपवन भ्रमण का दोहट बड़ा सार्थक है। दोहद की इस प्रकार की घटना आगम-साहित्य में अन्य स्थानों पर भी आई हैं। जैन कथा साहित्य में, बौद्ध जातकों में और वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में दोहट का अनेक स्थानों पर वर्णन
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