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कहते हैं।
3. आगम सर्वज्ञ प्रणीत है- आगम: सर्वज्ञेन निरस्तरागद्वेषेण प्रणीतः उपेयोपायतत्त्वस्य ख्यापकः अर्थात् रागद्वेष जिसके निरस्त हो गए हैं, वैसे सर्वज्ञों के द्वारा प्रणीत आगम है, जो प्राप्तव्य एवं प्राप्ति के साधनों का निरूपक होता है।
4. आगम आप्तवचन है-आप्त पुरुषों की वाणी आगम हैं, इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं
जिनवाणी- जैनागम साहित्य विशेषाङ्क
ऐसे
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01. अत्तस्स वा वयणं आगमो अर्थात् आप्त का वचन आगम है।
02. आगमो हयाप्तवचनमाप्तं दोषक्षयाद् विदुः ।
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03. आगमः...
..आप्तप्रणीतः अर्थात् आगम आप्तप्रणीत हैं। 04. आप्ाव्याहृतिरागमः अर्थात् आप्त द्वारा व्याहत आगम है।
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05. आप्तवचनादिनिबंधनमर्थज्ञानमागमः अर्थात् आप्तवचन से जो अर्थ का ज्ञान होता है, वह आगम है ।
06. आप्तोक्तिजार्थविज्ञानमागमः अर्थात् आप्त उक्ति से उत्पन्न अर्थ का ज्ञान होता है, वह आगम है ।
07. आप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः उपचारात् आप्तवचनं चेति " अर्थात् आप्तवचन से जो अर्थ ज्ञान (अर्थसंवेदन) उत्पन्न होता है, वह आगम है। गौण रूप से आप्तवचन ही आगम है।
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08. अबाधितार्थ प्रतिपादकम् आप्तवचनं आगमः" अर्थात् अबाधित अर्थ का प्रतिपादक आप्तवचन आगम कहलाता है।
09. आप्तेन हि क्षीणदोषेण प्रत्यक्षज्ञानेन प्रणीत आगमो भवति' अर्थात् जिसके सभी दोष समाप्त हो गए हैं, ऐसे प्रत्यक्ष ज्ञानियों के द्वारा प्रणीत आगम है।
5. गुरु परम्परा से प्राप्त ज्ञान-विज्ञान आगम है
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01. आचार्य पारम्पर्येणागच्छतीत्यागम् अर्थात् जो आचार्य -- परम्परा, गुरु-शिष्य परम्परा से प्राप्त होता है वह आगम है।
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02. गुरुपारम्पर्येणागच्छत्यागमः अर्थात् जो गुरु परम्परा से आता है। वह आगम है।
03. तदुपदिष्टं बुद्ध्यतिशयर्द्धियुक्त गणधरावघारितं श्रुतम्
अर्थात्
केवली भगवान् के द्वारा कहा गया तथा अतिशय बुद्धि एवं ऋद्धि
के धारक गणधर देवों के द्वारा जो धारण किया जाता है वह आगम है (श्रुत है)।
04. आगच्छतीति आचार्यपरम्परावासनाद्वारेणेत्यागमः " अर्थात् जो तत्त्व
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