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द्वादशांगी की रचना, उसका हास एवं आगम-लेखन
27 ११ विणकसूत्रांग ८: ००५७७०३५६०. ०० :००८०८.८६५१३५५०० १२लाष्टवादग १०८१८
५२५८०८७३२४२७१०५ १७१८५९१६६१६६४४.
पूर्वो की पदसंख्या पूर्वनाम श्वेताम्बर परम्परानुसार दिगम्बर परम्परानुसार १. उत्पादपूर्व एक करोड़ पद
एक करोड़ पद २ अग्रायागीय छियानवे लाख
छियानवे लाख ३. वीर्यप्रवाट सनर लाख
सनर लाख ४. अस्तिनास्ति प्रवाद साठ लाख
साठ लाख ज्ञानप्रवाद एक कम एक करोड़ एक कम एक करोड़ पट ६ सत्यप्रवाद एक करोड़ छः पद एक करोड़ छ: पद ७. आत्मप्रवाट छब्बीस करोड़ पद
छब्बीस करोड़ पट ८. कर्मप्रवाद १ करोड़ अस्सी हजार १ करोड ८० लाख पद ९. प्रत्याख्यान पद ८४ लाख पद
८४ लाख पद १०. विद्यानुवाद १ करोड १० लाख पद १ करोड १० लाख पद ११ अवंध्य २६ करोड़ पट
२६ करोड़ पद १२. प्राणायु १ करोड ५६ लाख पद १३ करोड़ पद १३. क्रियाविशाल ९ करोड़ पद
९ करोड़ पद १४. लोकबिन्दुसार साढ़े बारह करोड़ पद साढ़े बारह करोड़ पद
उपल्लिखित तालिकाओं में अंकित दृष्टिवाद और चतुर्दश पूर्वो की पदसंख्या से यह स्पष्टत: प्रकट होता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों हो परम्पराओं के आगमों एवं आगम संबंधी प्रामाणिक ग्रन्थों में दृष्टिवाट की पदसंख्या संख्यात मानी गई है। शीलांकाचार्य ने सूत्रकृतांग को टीका में पूर्व को अनन्तार्थ युक्त बताते हुए लिखा है
____“पूर्व अनन्त अर्थ वाला होता है और उसमें वीर्य का प्रतिपादन किया जाता है। अत: उसकी अनन्तार्थता समझनी चाहिए।'
अपने इस कथन की पुष्टि में उन्होंने दो गाथाएँ प्रस्तुत करते हुए लिखा है... "समस्त नदियों के बालुकणों की गणना की जाय अथवा सभी समुद्रों के पानी को हथेली में एकत्रित कर उसके जलकणों की गणना की जाय तो उन बालुकणों तथा जलकणों की संख्या से भी अधिक अर्थ एक पूर्व का होगा।
इस प्रकार पूर्व के अर्थ को अनन्नता होने के कारण वोर्य की भी . पूर्वार्थ के समान अनन्तता (सिद्ध) होती है।
नंटी बालावबोध में प्रत्येक पूर्व के लेखन के लिए आवश्यक मसि की जिस अतुल मात्रा का उल्लेख किया गया है उससे पूर्वो के संख्यात पद
और अनन्तार्थयुक्त होने का आभास होता है। ये तथ्य यही प्रकट करते हैं कि पूर्वो की पदसंख्या असीम अर्थात् उत्कृष्टसंख्येय पदपरिमाण की थी।
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