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________________ 317 ||15,17 नवम्बर 2006/ || जिनवाणी का होता है वह देश पौषध कहलाता है। देश पौषध भी यदि चौविहार उपवास के साथ किया गया है तो ग्यारहवाँ पौषध और यदि निविहार उपवास के साथ किया है तो दसवाँ पौषध कहलाता है। ग्यारहवाँ पौषध कम से कम पाँच प्रहर का तथा दसवाँ पौषध कम से कम चार प्रहर का होता है। कम से कम सात प्रहर के लिए जो दया की जाती है, उसे भी देश पौषध में ग्यारहवें व्रत के अन्तर्गत लेना चाहिए। प्रश्न सामायिक व पौषध में क्या अन्तर है? श्रावक-श्राविकाओं की सामायिक केवल एक मुहूर्त यानी ४८ मिनट की होती है, जबकि पौषध कम से कम चार प्रहर का (लगभग १२ घंटे का) होता है। सामायिक में निद्रा और आहार का त्याग करना ही होता है, जबकि पौषध चार और उससे अधिक प्रहर का होने से रात्रि के समय में निद्रा ली जा सकती है। प्रतिपूर्ण पौषध में तो दिन में भी चारों आहारों का त्याग रहता है, किन्तु देश पौषध में दया व्रतादि में दिन में अचित्त आहारादि ग्रहण किया जा सकता है। रात्रि में तो चौविहार त्याग होता उत्तर श्रावक-त्रा उत्तर प्रश्न पहले सामायिक ली हुई हो और पीछे पौषध की भावना जगे तो सामायिक पालकर पौषध ले या सीधे ही? उत्तर पौषध सीधे ही लेना चाहिए, क्योंकि पालकर लेने से बीच में अव्रत लगता है। कदाचित् पालते पालते उसकी भावना मंद भी हो सकती है। प्रश्न पौषध लेने के पश्चात् सामायिक का काल आने पर सामायिक पालें या नहीं? सामायिक विधिवत् न पालें, क्योंकि पौषध चल रहा है। सामायिक पूर्ति की स्मृति के लिए नमस्कार मंत्र आदि गिन लें। प्रश्न पौषध में सामायिक करें या नहीं? उत्तर पौषध में सावध योगों का त्याग होने से सामायिक की तरह ही है, परन्तु निद्रा, आलम्बन आदि इतने समय तक नहीं लूंगा, आदि के नियम कर सकते हैं। बारहवें व्रत को धारण करने वालों को मुख्य रूप से किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? उत्तर १. भोजन बनाने वाले और करने वालों को सचित्त वस्तुओं का संघट्टा न हो इस प्रकार बैठना चाहिए। २. घर में सचित्त-अचित्त वस्तुओं को अलग-अलग रखने की व्यवस्था होनी चाहिए। ३. सचित्त वस्तुओं का काम पूर्ण होने पर उनको यथास्थान रखने की आदत होनी चाहिए। ४. कच्चे पानी के छींटे, हरी वनस्पति का कचरा व गुठलियाँ आदि को घर में बिखेरने की प्रवृत्ति नहीं रखनी चाहिए। ५. धोवन पानी के बारे में अच्छी जानकारी करके अपने घर में सहज बने अचित्त कल्पनीय पानी को तत्काल फेंकने की आदत नहीं रखनी चाहिए, उसे योग्य स्थान में रखना चाहिए। ६. दिन प्रश्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229792
Book TitlePratikraman Vishyak Tattvik Prashnottar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherZ_Jinavani_002748.pdf
Publication Year2006
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size177 KB
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