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________________ 15, 17 नवम्बर 2006 जिनवाणी 315 सा झूठ बोलने का अनुमोदन करना सूक्ष्म झूठ है । २. कन्या संबंधी, पशु संबंधी, भूमि संबंधी, धरोहर-गिरवी संबंधी झूठी साक्षी देना आदि स्थूल मृषावाद है। सच्ची बात प्रकट करना अतिचार कैसे ? प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न स्त्री आदि की सत्य परन्तु गोपनीय बात प्रकट करने से उसके साथ विश्वासघात होता है, वह लज्जित होकर मर सकती है या राष्ट्र पर अन्य राष्ट्र का आक्रमण आदि हो सकता है। अतः विश्वासघात और हिंसा की अपेक्षा से सत्य बात प्रकट करना भी अतिचार है। कूट तौल-माप किसे कहते हैं ? देने के हल्के और लेने के भारी, पृथक् तौल-माप रखना या देते समय कम तौलकर देना, कम माप कर देना, इसी प्रकार कम गिनकर देना या खोटी कसौटी लगाकर कम देना । लेते समय अधिक तौलकर, अधिक मापकर, अधिक गिनकर तथा स्वर्णादि को कम बताकर लेना आदि । ब्रह्मचर्य किसे कहते हैं ? ब्रह्मचर्य - ब्रह्म अर्थात् आत्मा और चर्य का अर्थ है- रमण करना। यानी आत्मा के अपने स्वरूप में रमण करना ब्रह्मचर्य है। इन्द्रियों और मन को विषयों में प्रवृत्त नहीं होने देना, कुशील से बचना, सदाचार का सेवन करना, आत्म-साधना में लगे रहना व आत्म-चिन्तन करना 'ब्रह्मचर्य' है । अनर्थदण्ड किसे कहते हैं? आत्मा को मलिन करके व्यर्थ कर्म-बंधन कराने वाली प्रवृत्तियाँ अनर्थदण्ड हैं। इनसे निष्प्रयोजन पाप होता है। अतः वे सारी पाप क्रियाएँ जिनसे अपना या कुटुम्ब का कोई भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होता हो, अनर्थदण्ड हैं। प्रमादाचरण किसे कहते हैं? घर, व्यापार, सेवा आदि के कार्य करते समय बिना प्रयोजन हिंसादि पाप न हो, सप्रयोजन भी कम से कम हो, इसका ध्यान न रखना। हिंसादि के साधन या निमित्तों को जहाँ-तहाँ, ज्यों-त्यों रख देना । घर, व्यापार, सेवा आदि से बचे हुए अधिकांश समय को इन्द्रियों के विषयों में (सिनेमा, ताश, शतरंज आदि में) व्यय करना ' प्रमादाचरण' है। आत्मगुणों में बाधक बनने वाली अन्य सभी प्रवृत्तियाँ भी प्रमादाचरण कहलाती हैं। प्रमाद किसे कहते हैं व उसके कितने भेद होते हैं? संवर- निर्जरा युक्त शुभ कार्य में यत्न-उद्यम न करने को प्रमाद कहते हैं। अथवा आत्म-स्वरूप का विस्मरण होना प्रमाद है। प्रमाद के पाँच भेद हैं- १. मद्य २. विषय ३. कषाय ४. निद्रा ५. विकथा । ये पाँचों प्रमाद जीव को संसार में पुनः पुनः गिराते-भटकाते हैं। रात्रि - भोजन त्याग को बारह व्रतों में से किस व्रत में सम्मिलित किया जाना चाहिए? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229792
Book TitlePratikraman Vishyak Tattvik Prashnottar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherZ_Jinavani_002748.pdf
Publication Year2006
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size177 KB
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