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________________ 299 ||15,17 नवम्बर 2006|| | जिनवाणी भी उन्हें प्रायः करवाया जाता है, ताकि वे युद्ध कला को भूल नहीं जायें। इसी प्रकार श्रावक-श्राविका पौषध व बड़ी संलेखना का पाठ भी प्रतिदिन बोलते हैं ताकि इन धर्म-अनुष्ठानों की स्मृति उन्हें बनी रहे और अवसर मिलने पर इनकी साधना-आराधना कर सकें। स्वाध्याय का लाभ तो इन्हें बोलने से मिलता ही है। प्रश्न श्रावक के प्रथम व्रत में स्थूल हिंसा का त्याग है। स्थूल हिंसा से तात्पर्य क्या है? उत्तर स्थूल हिंसा से तात्पर्य मोटी हिंसा से है। पहले अणुव्रत में इसका स्वरूप बताया है- त्रस जीव बेइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों की जानकर संकल्प करके हिंसा का त्याग २ करण ३ योग से करना। न स्वयं इन जीवों की हिंसा करना-न करवाना मन, वचन, काया से। प्रश्न तो क्या स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग नहीं करवाया जाता? उत्तर गृहस्थ जीवन में स्थावर जीवों (पृथ्वीकायादि ५) की संपूर्ण हिंसा का त्याग संभव नहीं, हाँ उनकी मर्यादा अवश्य की जाती है। प्रश्न इसी प्रकार मोटे झूठ, मोटी चोरी के दूसरे-तीसरे व्रत में त्याग किए जाते हैं, सो कैसे? उत्तर मोटे झूठ और मोटी चोरी के त्याग का स्वरूप इन दोनों अणुव्रतों के शुरू में ही बता दिया गया है, जैसे कन्नालीए आदि और खात खनकर आदि। प्रश्न दसवें व्रत में क्या त्याग किया जाता है और कैसे किया जाता है? उत्तर दसवें व्रत में १४ नियमों के अनुसार त्याग किया जाता है। सचित्त द्रव्य आदि में काम में आने वाली वस्तुओं, वाहन आदि का भोग निमित्त से भोगने का त्याग है। एक करण तीन योग से स्वयं के लिए। १४ नियमों का ग्रहण 'जाव अहोरत्तं' एक दिन रात के लिए किया जाता है फिर इनमें लगे दोषों का चिन्तन कर मिच्छामि दुक्कडं देकर अगले दिन के लिए पुनः ग्रहण किया जाता है। इस व्रत में संवर और देश पौषध भी किया जा सकता है। प्रश्न प्रायः १२ व्रतों में दो करण तीन योग से प्रत्याख्यान बताए गए हैं। परन्तु ५वें व्रत में १ करण तीन योग से प्रत्याख्यान क्यों बताए गए हैं? उत्तर पाँचवाँ व्रत परिग्रह के परिमाण/मर्यादा न करने का है। मर्यादा स्वयं के लिए ही की जा सकती है, अन्य के लिए नहीं। परिग्रह परिमाण करने वाला साधक स्वयं परिग्रह की मर्यादा का मन, वचन, काया से पालन करेगा। परन्तु वह अन्य को बाध्य नहीं कर सकता। इसी कारण इस व्रत में प्रत्याख्यान एक करण तीन योग से ही किया गया है। पुत्रादि को परिग्रह के बारे में कहना पड़ सकता है, इस अपेक्षा से एक करण का प्रयोग किया गया है। प्रश्न छठे व्रत दिशि परिमाण व्रत में श्रावक दिशाओं की मर्यादा करता है। उसमें 'स्वेच्छा से काया से आगे जाकर ५ आस्रव सेवन का पच्चक्खाण' शब्दों का प्रयोग क्यों किया गया है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229790
Book TitleShravak Pratikraman Sambandhi Prashnottar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Karnavat
PublisherZ_Jinavani_002748.pdf
Publication Year2006
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size77 KB
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