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________________ 282 | जिनवाणी |15.17 नवम्बर 2006|| में जो टीका उपलब्ध नहीं है, वह टीका उपलब्ध टीका से बड़ी थी। क्योंकि आचार्य ने स्वयं लिखा है'व्यासार्थस्तु विशेषविवरणादवगन्तव्य इति।' अन्वेषणा करने पर भी यह टीका अभी तक उपलब्ध नहीं हो सकी है। सामायिक आदि के तेबीस द्वारों का विवेचन नियुक्ति के अनुसार किया गया है। नियुक्ति और चूर्णि में जिन विषयों का संक्षेप में संकेत किया गया है उन्हीं का इसमें विस्तार किया गया है। ध्यान के प्रसंग में ध्यानशतक की समस्त गाथाओं का भी विवेचन किया है। इस वृत्ति का नाम शिष्यसहिता है। इसका ग्रन्थमान २२००० श्लोकप्रमाण है। लेखक ने अन्त में अपना संक्षेप में परिचय भी दिया है। कोट्याचार्य ने आचार्य जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण के अपूर्ण स्वोपज्ञ भाष्य को पूर्ण किया और विशेषावश्यक भाष्य पर एक नवीन वृत्ति लिखी। मलधारी आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी विशेषावश्यकभाष्यवृत्ति में कोट्याचार्य का प्राचीन टीकाकार के रूप में उल्लेख किया है। आचार्य मलयगिरि उत्कृष्ट प्रतिभा के धनी मूर्धन्य मनीषी थे। आवश्यकसूत्र पर भी उन्होंने आवश्यकविवरण नामक वृत्ति लिखी। यह विवरण मूल सूत्र पर न होकर आवश्यकनियुक्ति पर है। यह विवरण अपूर्ण ही प्राप्त हुआ है। इसमें मंगल आदि पर विस्तार से विवेचन और उसकी उपयोगिता पर चिन्तन किया गया है। नियुक्ति की गाथाओं पर सरल और सुबोध शैली में विवेचन है। विवेचन की विशिष्टता है कि आचार्य ने विशेषावश्यकभाष्य की गाथाओं पर स्वतंत्र विवेचन न कर उनका सार अपनी वृत्ति में उटंकित कर दिया है। वृत्ति में जितनी भी गाथाएँ आई हैं, वे वृत्ति के वक्तव्य को पुष्ट करती हैं। वृत्ति में विशेषावश्यकभाष्य की स्वोपज्ञवृत्ति का भी उल्लेखा हुआ है। साथ ही प्रज्ञाकरगुप्त, आवश्यक चूर्णिकार, आवश्यक मूल टीकाकार, आवश्यक मूल भाष्यकार, लघीयस्त्रयालंकार, अकलंकन्यायावतार वृतिकार प्रभृति का भी उल्लेख हुआ है। यत्र-तत्र विषय को स्पष्ट करने के लिए कथाएँ भी उद्धृत की गई हैं। मलधारी आचार्य हेमचन्द्र महान् प्रतिभासम्पन्न और आगमों के ज्ञाता थे। वे प्रवचनपटु और वाग्मी थे। उन्होंने अनेक ग्रन्थों का निर्माण किया। आवश्यकवृत्ति प्रदेशव्याख्या आचार्य हरिभद्र की वृत्ति पर लिखी गई है, इसलिए उसका अपर नाम हारिभद्रीयावश्यक वृत्तिटिप्पणक है। मलधारी आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य ने प्रदेश-व्याख्याटिप्पण भी लिखा है। आचार्य मलधारी हेमचन्द्र की विशेषावश्यक भाष्य पर दूसरी वृत्ति शिष्यहिता है। यह बृहत्तम कृति है। आचार्य ने भाष्य में जितने भी विषय आये हैं, उन सभी विषयों को बहुत ही सरल और सुगम दृष्टि से समझाने का प्रयास किया है। दार्शनिक चर्चाओं का प्राधान्य होने पर भी शैली में काठिन्य नहीं है। यह इसकी महान् विशेषता है। अन्य अनेक मनीषियों ने भी आवश्यकसूत्र पर वृत्तियाँ लिखी हैं। संक्षेप में उनका विवरण इस प्रकार है- जिनभट्ट, माणिक्यशेखर, कुलप्रभ, राजवल्लभ आदि ने आवश्यक सूत्र पर वृत्तियों का निर्माण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229786
Book TitleAavashyak Sutra par Vyakhya Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherZ_Jinavani_002748.pdf
Publication Year2006
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size95 KB
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