SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 192 (८) हरिभद्रसूरिए ते ते योगमुद्दा परत्वे जुदी जुदी योगपरंपराना आचार्यो केवा एकमत छे, अने ते बधा शब्दभेदथी केवी रीते एक ज वस्तु कहे छे ए दर्शाव्युं छे. प्रभादृष्टिमां निर्मळ ध्यानने परिणामे असंगानुष्ठानरूप सत्प्रवृत्तिपद होय छे एम कही आ पदने जुदी जुदी योग परंपरामां जुदा जुदा नामे ओळखवामां आवे छे एम कर्तुं छे. आ नामो छ - प्रशान्तवाहिता (सांख्ययोग), विसभागपरिक्षय (बौद्ध), शिववर्त्म (शैव) अने ध्रुवाध्वन् (महाव्रतिक). (९) पंडित सुखलालजी एमना 'समदर्शी आचार्य हरिभद्र' ग्रंथमां कहे छे के गीता आदि अनेक ग्रंथोमां 'संन्यास'पद बहु जाणीतुं छे. कोई जैनाचार्ये, हरिभद्र पहेला, एने स्वीकार्यु लागतुं नथी. हरिभद्र ए 'संन्यास'पदने स्वीकारे छे एटलुं ज नहि, पण धर्मसंन्यास, योगसंन्यास अने सर्वसंन्यासरूपे विविध संन्यासनुं वर्णन करी एम सूचवे छे के जैन परंपरा गुणस्थानो द्वारा जे विकासक्रम वर्णवे छे ते आ त्रिविध संन्यासमां आवी जाय छे. (१०) वळी, पंडितजी तेमना उपर्युक्त ग्रंथमां नीचे मुजब नोंधे छे : गीताकारे मात्र कर्मना (प्रवृत्तिना) संन्यासने संन्यास न कहेतां काम्यकर्मना त्यागने संन्यास कहेल छे, अने नित्यकर्म करवा छतां तेना फळमां अनासक्त रहेवा उपर मुख्य भार आपी संन्यासर्नु हार्द स्थाप्युं छे. हरिभद्रसूरिए पण गीतानिरूपित संन्यासना बे तत्त्वो योगदृष्टिसमुच्चयमा निरूप्यां छे. काम्य या फलाभिसंधिवाळां कर्मोनो ज त्याग ए एक, अने जे नित्य अने अनिवार्य कर्मानुष्ठान होय तेमां पण असंगता या अनासक्ति ए बीजुं. आ बे तत्त्वोने स्वीकारी तेमणे इतर निवृत्तिप्रधान परंपराओनी पेठे जैन परंपराने पण प्रवृत्तिना यथार्थ स्वरूपनो बोध आप्यो. आ वस्तु जैन परंपरामां प्राचीन काळथी उपदेशायेली छे ज. काषायिक प्रवृत्तिथी ज कर्मबंध थाय छे, कषायरहित प्रवृत्तिथी कर्मबंध थतो नथी. एटले प्रवृत्ति नहि पण कषायो छोडवाना छे. कषायमुक्तिः किल मुक्तिरेव । आ ज वातने हरिभद्रसूरिए व्यापक परिभाषामां सुंदर रीते रजू करी छे. (११) उपरांत, पंडितजीए आपणुं ध्यान एक रसप्रद बाबत प्रत्ये दोर्यु छे, ते नीचे मुजब छे. गीतामां आवती 'बुद्धिर्ज्ञानमसंमोहः' पदावलीनो प्रयोग करी हरिभद्रसूरिए बुद्धि करतां ज्ञाननी अने ज्ञान करतां असंमोहनी कक्षा केवी चडियाती छे ते रत्ननी उपमा द्वारा दर्शाव्युं छे, अने छेवटे तेमणे का छे के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229720
Book TitleAcharya Haribhadra ane temno Yogdrushtisamucchaya Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagin J shah
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size292 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy