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बे ते पण आध्यात्मिक विकासक्रम आलेखवामां आव्यो छे. एक रीत छे इच्छायोग, शास्त्रयोग अने सामर्थ्ययोग ए त्रण प्रकारना योगनी क्रमिक भूमिकाओ द्वारा आलेखवानी ने बीजी रीत छे गोत्रयोगी, कुलयोगी, प्रवृत्तचक्रयोगी अने सिद्धयोगी ए चार योगीभेदो द्वारा आलेखवानी. परंतु मुख्य रीत तो छे आठ दृष्टिओ द्वारा आलेखवानी. आ आठ योगदृष्टिओ छे मित्रा, तारा, बला, दीप्रा, स्थिरा, कान्ता, प्रभा अने परा. आम योगदृष्टिसमुच्चयमां आध्यात्मिक विकासक्रम आलेखननी रीतनी नवीनता छे.
(२) साम्प्रदायिकताने गाळी विविध योगपरंपराओनो समन्वय करवानो स्तुत्य प्रयोग हरिभद्रसूरिए योगदृष्टिसमुच्चयमां कर्यो छे. ते माटे तेमणे अनेक योगशास्त्रोनो अभ्यास करी ते बधांमांथी नवनीत तारव्युं छे. ते पोते ज लखे छे : अनेकयोगशास्त्रेभ्यः संक्षेपेण समुद्धृतः । दृष्टिभेदेन योगोऽयमात्मानुस्मृतये परः ॥
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(३) तेथी एक ज परंपरामां रूढ थयेली परिभाषा के शैलीनो आश्रय न लेतां नूतन व्यापक परिभाषा अने नूतन शैली हरिभद्रसूरिए एवी रीते योजी के जे द्वारा बधी ज योगपरंपराओना योगविषयक मूळगत मंतव्यो केवी रीते एक छे अथवा एकबीजानी तद्दन नजीक छे ए दर्शावी शकाय अने जुदी जुदी परंपराओमां योगतत्त्व विशेनुं जे पारस्परिक अज्ञान प्रवर्ततुं होय तेने यथासंभव निवारी शकाय.
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(४) योगनुं प्रयोजन ज चित्तशुद्धि छे, रागद्वेषरूप मळमांथी चित्तनी मुक्ति छे. योगग्रंथमां या तेना लेखकमां आ शुद्धिना दर्शन थवा जोईए. जुदी जुदी परंपराना योगाचार्योने हरिभद्रसूरि बहु आदरपूर्वक उल्लेखे छे, याद करे छे. ते योगभाष्यना कर्ता व्यासने महामति कहे छे, योगसूत्रकार पतंजलिने भगवान् पतंजलि कहे छे, भास्करबंधुने भदंत तरीके उल्लेखे छे. बळी, ते ते परंपराना कपिल, बुद्ध अने जिनने ते सर्वज्ञ तरीके स्वीकारे छे. ते बधा सर्वज्ञ होवा छतां तेमनी देशनामां जणाता भेदनो खुलासो ते श्रोताओनी कक्षाना भेदना आधारे करे छे. तेमनो देशनाभेद विनेयानुगुण्यने कारणे छे एम ते कहे छे. कपिल वगेरे भवव्याधिने मटाडनार श्रेष्ठ वैद्यो ( भवव्याधिभिषग्वरो) छे. तेओ व्याधिनी तीव्रतामंदता पारखी पछी ते प्रमाणे औषध आपे छे. एकनुं एक औषध बधा
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