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जैन परंपरामां परिचारणाभेदविचार - एक तुलनात्मक नोंध
- नगीन जी. शाह जैन ग्रंथोमां 'परिचारणा' शब्दनो प्रयोग मैथुनक्रियाना अर्थमां थयो छे. उपनिषदोमां पण आ शब्द आ अर्थमां वपरायो छे. अहीं उपनिषदोमांथी बे स्थानो उद्धृत करीए छीए. कठोपनिषद् १.२ मां यम नचिकेताने कहे छे : इमा रामा: सरथाः सतूर्या न हीदृशा लम्भनीया मनुष्यैः । आभिर्मत्प्रत्ताभिः परिचारयस्व मरणं मानुप्राक्षी: । छान्दोग्य उपनिषद् (४.४)मां ज्यारे सत्यकाम तेनी माताने पोतानुं गोत्र (पितृवंश के पितृकुळ) पूछे छे त्यारे माता तेने उत्तर आपे छे : नाहमेतद् वेद तात ! तद्गोत्रस्त्वमसि, बह्वहं चरन्ती परिचारिणी यौवने त्वामलभे ... | बौद्ध परंपरामां पण आ शब्द आ अर्थमां प्रयोजायेलो मळे छे.
पन्नवणासूत्रना ३४मा पदमां (प्रकरणमां) परिचारणाना नीचे मुजब पांच भेदो जणाव्या छे - मनःपरिचारणा, रूपपरिचारणा, शब्दपरिचारणा, स्पर्शपरिचारणा अने कायपरिचारणा. ___ मनःपरिचारणानो अर्थ छे केवळ इच्छाथी/संकल्पथी ज साद्यंत समग्र मैथुनक्रिया पूर्ण थई जाय छे अने पूर्ण तुष्टि थाय छे. आ परिचारणा आणत-प्राणत-आरण-अच्युत-कल्पगत देवोमां होय छे.
रूपपरिचारणानो अर्थ छे केवळ सकाम दृष्टिमात्रथी ज साद्यंत समग्न मैथुनक्रिया पूर्ण थई जाय छे अने पूर्ण तुष्टि अनुभवाय छे. आ परिचारणा ब्रह्मलोक अने लोकांतककल्पगत देवोमां होय छे.
शब्दपरिचारणानो अर्थ छे केवळ शब्दश्रवणमात्रथी ज साद्यंत समग्र मैथुनकिया पूर्ण थाय छे अने पूर्ण संतोष अनुभवाय छे. आ परिचारणा महाशुक्र अने सहस्रारगत देवोमां होय छे.
स्पर्शपरिचारणानो अर्थ छे केवळ हस्तादिना स्पर्शमात्रथी ज साद्यंत समग्र मैथुनक्रिया पूर्ण थाय छे अने पूर्ण संतोष प्राप्त थाय छे. आ परिचारणा सनतकुमार अने माहेन्द्रकल्पना देवोमां होय छे.
कायपरिचारणामां देव-देवी- मिथुन रचाय छे अने घर्षण द्वारा मैथुनक्रिया
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