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लखेलुं छे. पडिमात्रानो क्वचित् उपयोग थयो छे अने 'ख' माटे 'ष' वपरायो
छे.
अक्षरो चोख्खा पण नाना छे. कविना जीवनकाळमां ज, सं. १६५१मां आ प्रत लखायेली छे, पण बीजा लेखनदोषो उपरांत शब्दो रही जवा ने पंक्ति बेवडावी जेवी भूलो पण थयेली छे.
ग : महावीर जैन विद्यालय, मुंबई, क्रमांक ७९२. पत्र २, २६ x ११.५ सें.मि., पत्रमा १६ लीटी, बीजा पत्रनी पाछळी बाजुए ७ लीटी, दरेक लीटीमा आशरे ४८ अक्षरो कृतिनो सीधो ज आरंभ थयो छे. पडिमात्रानो क्वचित् उपयोग थयो छे अने 'ख' माटे 'ष' वपरायो छे.
अक्षरो थोडा मोटा, चोख्खा अने सुघड छे लेखनसंवत वगरनी आ प्रत 'क' प्रतनी समांतर चाले छे ने जुनी होवानुं प्रतीत थाय छे, जोके क्वचित् भ्रष्ट पाठ पण मळे छे.
घ : हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञान मंदिर, पाटण, डा. ११५, क्रमांक३२८९. ४ पत्र तेमां पत्र १ थी ३ (आगली बाजु), २२ x १० सें.मि., पत्रमा १४ लीटी, त्रीजा पत्रनी आगली बाजुए ७मी लीटीमां चार अक्षर पछी बीजी कृति शरू थाय छे, दरेक लीटीमां आशरे ३६ अक्षरो. आरंभमां भले मींडुं छे. पडिमात्रा नथी, 'ख' माटे 'ष' वपरायो छे.
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अक्षरो थोडा मोटा, चोख्खा अने सुघड छे पण लेखनदोषो घणा छे. एथी भ्रष्ट पाठ नीपजे छे. प्रतमां लेखनसंवत नथी. पाछळनी कृतिओ जुदी कलमथी अने जुदा अक्षरोमां लखायेली छे.
च : कक्काबत्रीशीना चंद्रावला तथा चोवीश तीर्थंकरादिकना चंद्रावलानो संग्रह, प्रका. जगदीश्वर छापखानुं, मुंबई, १८८५मां पृ. ७६ थी ८४ पर मुद्रित आरंभमां 'अथ श्रीसीमंधरजिनचंद्रावलाप्रारंभ:' छे.
आमां भाषारूप थोडुं अर्वाचीन करी नाखवामां आव्युं छे ते उपरांत भ्रष्ट पाठो पण मळे छे.
प्रस्तुत संपादन के प्रतना पाठने मुख्य राखीने करवामां आव्युं छे. एना जे थोडा लेखनदोषो छे ते सुधारवामां ग प्रत उपयोगी बनी छे. ते
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