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________________ 81 'निच्छयओ पुण एसो जायइ नियमेण चरमपरियट्टे । तहभव्वत्तमलक्खयभावा अच्चंतसुद्ध त्ति ॥१॥४३ आमां, तेम ज ते ज विंशिका नी आठमी गाथाना पूर्वार्धः 'एयंमि सहजमलभावविगमओ सुद्धधम्मसंपत्ती ॥४४ एमां स्पष्टरूपे प्राप्त थाय छे. १०. तृतीय सूत्रमां आ प्रमाणे पाठ छ : 'तओ अणुण्णाए पडिवज्जेज्ज धम्मं । अण्णहा अणुवहे चेवोवहाजुत्ते सिया। धम्माराहणं खुहियं सव्वसत्ताणं । तहा तहेयं संपाडेज्जा । सव्वहा अपडिवज्जमाणे चएज्ज ते अट्ठाणगिलाणोसहत्थचागनाएणं ।'४५ __ आ पाठनी साथे श्रीहरिभद्राचार्ये ज रचेला 'धर्मबिन्दु' ग्रथनां केटलांक सूत्रो सरखावी शकाय तेम छे. आ रह्यां ते सूत्रो : 'तथा-गुरुजनाद्यनुज्ञेति ॥२३॥ तथा तथोपधायोग इति ।२४॥ दुःस्वप्नादि-कथनमिति ।२५॥तथा विपर्ययलिङ्गसेवेति ।२६॥ दैवज्ञैस्तथा निवेदनमिति ।२७॥ न धर्मे मायेति ।२८॥ उभयहितमेतदिति ।२९॥ यथाशक्ति सौविहित्यापादन-मिति ॥३०॥ ग्लानौषधादिज्ञातात् त्याग इति ।३१॥४६ अहीं खूबी ए छे के 'धर्मबिन्दु' नां उपर लखेलां सूत्रो पैकी २३,२४,२५ एवां अमुक सूत्रोनो अनुवाद, उपर नोंधेल पंचसूत्र-पाठमां साक्षात् प्राप्त थाय छे.४७ पंचसूत्र अने तेनी टीका - बन्ने एक ज कर्ता-हरिभद्रसूरिनी ज रचना छे तें वातने आ बाबत प्रबळ समर्थन पूरुं पाडे छे. ११. पांचमा सूत्रमा आवतां 'ण दिदिक्खा अकरणस्स' ए तथा ‘ण सहजाए णिवित्ती'४८ ए, आ बे वाक्योना संदर्भ, 'योगदृष्टिसमुच्चय' ना : दिदृक्षाद्यात्मभूतं तन्मुख्यमस्या निवर्तते । प्रधानादिनतेर्हेतुस्तदभावान्न तन्नतिः ॥२००॥ अन्यथा स्यादियं नित्यमेषा च भव उच्यते ॥२०१॥९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229685
Book TitlePanchsutra na Karta Kon Chirantanacharya ke Haribhadra Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size504 KB
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