________________ 144 अनुसन्धान-५० समवायाङ्गसूत्र में, होनेवाले इक्कीसवें तीर्थंकर के रूप में जिनका उल्लेख किया गया है वे नारद श्रीमुनिसुव्रतस्वामी के तीर्थ में हुए हैं / जब कि कृष्ण वासुदेव श्रीनेमिनाथ प्रभु के तीर्थ में हुए हैं / अब यहां "नारद इक्कीसवें तीर्थंकर होनेवाले हैं इसका कारण यह हो सकता है कि वासुदेव कृष्ण भावी तीर्थंकर होनेवाले हैं।" - ऐसा विधान करना कहां तक संगत है यह सोचना चाहिए / और "वासुदेव कृष्ण का प्रथमतः नरकगामी होना और नारद का न होना एक अजीब सी बात है / " / - यह खुद एक अजीब सा विधान है। क्योंकि, प्रथम तो जैन शास्त्रों के अनुसार, वासुदेव का जीव 'निदान' कर के वासुदेव बनता है, फलतः उसकी अधोगति निश्चित ही है / दूसरा, वासुदेव अपने भव में भी इतने युद्ध व आरम्भ-समारम्भादि करते हैं कि उनकी नरकगति निश्चित ही है / पर इससे यह कैसे निश्चित हो सकता है कि (वासुदेव के सम्पर्क में आने से) नारद भी नरकगामी हो ! क्योंकि नारद कोई 'निदान' करके तो हुए नहि, ना ही वे कुछ आरम्भ-समारम्भादि बडे पाप भी करते हैं कि जिससे वे नरकगामी बनें ! ऐसी विसंगतियां इस शोधपत्र में और भी हैं, किन्तु सब को बताने का कोई अवसर नहीं है / सार इतना ही है कि ऐसे शोधपत्र लिखने के लिए कुछ अधिक सज्जता हो यह आवश्यक प्रतीत होता है / बिना सज्जता से लिख देने में संशोधकीय विश्वसनीयता को ठेस लग सकती है /