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________________ मार्च २०१० १०१ सरस्वती, ६. ब्राह्मी, ७. महाधेनू, ८. वेदगर्भा, ९. ईश्वरी, १०. महालक्ष्मी, ११. महाकाली, १२. महासरस्वती । इससे मुझे ऐसा आभास हुआ कि प्राचीनकाल में सरस्वती को ही विद्या, आर्या (वती), सरस्वती आदि नामों से जाना जाता था । जैन परम्परा में भी भाषाओं में आर्यभाषा और अनार्यभाषा का उल्लेख मिलता है, इससे यह फलित होता है कि प्राचीन काल में सरस्वती का अन्य नाम आर्यावती, विद्या या महाविद्या भी रहे होंगे। पुनः प्राचीन जैन प्राकृत ग्रन्थ भी प्रमुख रूप से आर्या छन्द में लिखे गये हैं इससे यह फलित होता है कि आर्या (आर्यावती) का सम्बन्ध सम्यक् ज्ञान से अर्थात् जिनवाणी से है और यह सरस्वती का ही एक उपनाम है । इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि वस्तुतः मथुरा में उपलब्ध विद्या एवं आर्यावती भी सरस्वती ही है । उस ग्रन्थ में सरस्वती के बारह नाम और लक्षण इस प्रकार दिए गए हैं अथ द्वादश सरस्वती स्वरूपाणि (देवतामूर्ति प्रकरणम्) एकवक्त्राः चतुर्भुजा मुकुटेन विराजिताः । प्रभामंडलसंयुक्ताः कुंडलान्वितशेखराः ॥१॥ इति सरस्वती लक्षणानि । अक्ष-पद्म-वीणा-पुस्तकैर्महाविद्या प्रकीर्तिता । इति महाविद्या १ अक्ष-पुस्तक-वीणा-पद्यैः महावाणी च नामतः ॥२॥ इति महावाणी २ वराक्षं पद्मपुस्तके शुभावहा च भारती । इति भारती ३ वराक्षपद्मपुस्तकैः सरस्वती प्रकीर्तिता ॥३॥ इति सरस्वती ४ वराक्षं पुस्तकं पद्मं आर्या नाम प्रकीतिता ॥ इत्यार्या ५ वरपुस्तकपद्माक्ष(क्षा) ब्राह्मी नाम सुखावहा ॥४॥ इति ब्राह्मी ६ वर-पद्म-वीणा-पुस्तकैः महाधेनुश्च नामतः । इति महाधेनुः ७ वरं च पुस्तकं वीणा वेदगर्भा तथाम्बुजम् ॥५॥ इति वेदगर्भा ८ अक्षं तथाऽभयं पद्मपुस्तकैरीश्वरी भवेत् । इति ईश्वरी ९ अक्षं पद्मं वरग्रन्थौ महालक्ष्मीस्तु धारिणी ॥६॥ इति महालक्ष्मी १० अक्षं पद्मं पुस्तकं च महाकाल्या वरं तथा । इति महाकाली ११ अक्षपुस्तकवीणाश्च पद्मं महासरस्वती ॥७॥ इति महासरस्वती १२ इति द्वादश सरस्वतीस्वरूपाणि (जयमते)
SR No.229683
Book TitleKya Aryavati Jain Sarasvati Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size161 KB
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