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मार्च २०१०
थी, यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहता है ।
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यह फलक एक कोने से खण्डित है । इसके उपर के भाग में मध्य में स्तूप और दोनों ओर दो-दो तीर्थंकर प्रतिमाएं उत्कीर्ण है । इस भाग के उपर की ओर और नीचे की ओर अभिलेख अंकित है । उसके नीचे दायी ओर 'आर्यावती' का शिल्पांकन है जो प्रायः प्रथम फलक के समान ही है; आर्यावती के समीप एक जैन मुनि (आर्यकन्ह) खड़े हुए हैं । उनके एक हाथ में पिच्छिका है, यह हाथ उपर उठा हुआ है, दूसरे हाथ
में कम्बल और मुखवस्त्रिका है, जिससे वे अपनी नग्नता छिपाए हुए है। उनके समीप छोटे आकार के तीन व्यक्तियों का अंकन है । उनमें उपर की ओर जो व्यक्ति खड़ा है वह हाथ जोड़े हुए है, किन्तु उसके सिर पर फनावली अंकित है। नीचे, मेरी दृष्टि में, कोई साध्वी अंकित है, जिसके एक हाथ में पिच्छिका और दूसरे हाथ में मुखवस्त्रिका अस्पष्ट रूप से परिलक्षित होती हैं। उसके पास कोई स्त्री खड़ी है और वह अपने हाथ से आर्यिका का स्पर्श करते हुए या हाथ जोड़े हुए है। चूंकि इस फलक का सम्बन्ध स्पष्टतः आर्यकण्ह के साथ है, मेरी दृष्टि में यही कारण है कि गृहस्थ उपासक के रूप में सर्पफनावली के साथ बलराम को अंकित किया गया हो ।' क्योंकि हिन्दू परम्परा में कृष्ण
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द्वितीय फलक
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१. यहां आर्यकण्ह यानी आर्य कृष्ण एक जैन आचार्य का नाम है । उसको 'कृष्ण' वासुदेव मान लेना, व हिन्दू परम्परा का सन्दर्भ देकर सर्वफनावलीवाली आकृति को बलराम कह देना नितान्त क्लिष्ट है व भ्रान्तिजनक प्रतिपादन है । फिर बलराम के सिर पर सर्पफनावली हो, यह हिन्दू ( एवं जैन) परम्परा को मान्य भी कहां ? । अत: यह आकृति को बलराम के साथ जोडना कतई उचित नहि लगता । - शी.