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________________ मार्च २०१० 1 SA-ALP S a हुई है। उसके एक हाथ में पुस्तक, दूसरे हाथ का अग्रभाग खण्डित है, फिर भी ऐसा लगता है कि वह हाथ वरद मुद्रा में रहा होगा । प्रतिमा के ओर एक जैन श्रमण है, जो नग्न है किन्तु उसके हाथ में ऊनी कम्बल तथा दूसरे हाथ में पात्र है । दूसरी ओर हाथ जोड़े हुए एक गृहस्थ का अंकन है जो वर्तमान के श्वेताम्बर श्रमणों के समान अधोवस्त्र और उत्तरीय धारण किये हुए है तथा पादपीठ पर अभिलेख है ।। ___ इस सरस्वती के अतिरिक्त कंकाली टीला जैन स्तूप मथुरा के परिसर से हमें दो आयागपट्ट ऐसे मिले हैं, जिन पर आर्यावती का शिल्पांकन उपलब्ध होता है। दोनों ही आयागपट्ट अभिलेखों से युक्त हैं । इनमें एक अभिलेख का प्रारम्भ 'नमो अरहतो rahasya वर्धमानस्' से होता है और दूसरे indiax.26 अभिलेख का प्रारम्भ 'सिद्धम्' से होता है । अतः यह दोनों पट्ट भी जैनधर्म से ही सम्बन्धित है । किन्तु इनमें 'आर्यावती' नामक जिस देवी का उल्लेख एवं शिल्पांकन है, वह आर्यावती कौन है ? उसका जैनधर्म से सम्बन्ध किस रूप में रहा हुआ है ? यह प्रश्न आज तक अनिर्णीत ही रहा है। कुछ विद्वानों ने इसे तीर्थंकर माता के रूप में पहचानने का प्रयत्न अवश्य किया, किन्तु पहली सुलझी नहीं । इस पहली को सुलझाने का ही एक प्रयत्न इस लेख में भी किया जा रहा है, किन्तु इस चर्चा के पूर्व हमें उन दोनों फलकों के चित्रों और उनके अभिलेखों को सम्यक् प्रकार से समझ लेना होगा । एक फलक पर 'आर्यावती' नाम का स्पष्ट निर्देश है, दूसरे फलक पर आर्यावती नाम का स्पष्ट निर्देश तो नहीं है, किन्तु दोनों शिल्पांकन एक समान होने से यह मानने में कोई बाधा नहीं है कि ये दोनों फलक आर्यावती से सम्बन्धित है। हम क्रमशः उनके चित्र एवं विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं :
SR No.229683
Book TitleKya Aryavati Jain Sarasvati Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size161 KB
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