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वणी लीधा छे, ते परथी एमणे धार्मिक ग्रंथोनो खास करीने पुराणोनो ऊंडो अभ्यास कर्यो हतो एम स्पष्ट जणाय छे. सांप्रदायिक रीते तेमनो दृष्टिकोण अति उदार जणाय छे कारण के तेमणे एकसरखा उत्कट भक्तिभावथी राम, कृष्ण, शिव अने पार्वतीनुं स्तुतिपूर्वकनुं वर्णन कर्तुं छे, तेम छतां आ कृतिमां शिव अने पार्वतीने लगता श्लोको प्रमाणमां वधारे छे. ते परथी तेओ शिवभक्त होवानुं अनुमान करी शकाय छे.
आ भक्तिसभर काव्यने कविए 'अश्वधाटीकाव्य' ए शीर्षक केम आप्युं ए विशे कविए के काव्यना टीकाकारे सहेज पण अणसार आप्यो नथी. आ काव्यनी लगभग प्रत्येक पंक्तिए विविध अनुप्रास आवे छे तेथी आ काव्यना लयने घोडानी थनगनती चाल साधे सरखावीने अश्वघाटी (घोडानी चाल जेवुं) एवं नाम आप्युं होय अ शक्य छे.
आ काव्यनो अंतिम श्लोक ( नं. २६) अनुष्टुप् वृत्तमां रचायो छे अने बाकीना २५ श्लोक २२ अक्षरना मत्तेभ नामना अप्रसिद्ध छंदमां रचाया छे । तेनुं गणमाप त, भ, य, ज, स, र, न, गा छे. ए नोंधपात्र छे के आ छंदनुं नाम छंद:शास्त्रना प्रसिद्ध ग्रंथोमां मळतुं नथी पण श्रीकृष्ण कविनी 'मन्दारमरन्दचम्पू' नामनी कृतिमां तेनुं लक्षण मळे छे : मत्तेभाख्यं तभयजसरनगयुक्तं स्वरार्वफणिभिन्नम्। संस्कृत काव्योमां भाग्ये ज प्रयोजाता आ दीर्घ छंदने आ काव्यमां कविओ सफळपणे प्रयोज्यो छे ते बाबत तेमनी छंद परनी पकड़ दर्शावे छे.
आ काव्यना प्रथम श्लोकमा रामचंद्रने भजवानुं कह्युं छे. बाकीना २४ श्लोकोमां शिवने लगता दस श्लोको छे. पार्वतीने लगता आठ श्लोको छे. ज्यारे कृष्ण, विष्णु तेमज नरसिंह अवतारने लगता छ श्लोको छे. श्लोको सळंग आवता नथी. कवि मनुष्यनी सांसारिक बाबतो प्रत्येनी आसक्तिने
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मन्दारमरन्दचम्पू (काव्यमाला ५२, प्र. निर्णयसागर प्रेस, मुंबई, १९२४) पृ. १९
श्लोक नं. २, ३, ७, ८, ११, १७, १८, २२, २३ अने २५
श्लोक नं. ४, ५, ६, १३, १५, २०, २१ अने २४
श्लोक नं. ९, १०, १२, १४, १६, १९
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