________________ अनुसंधान-१५ . 89 आसो आशा सब फलि रे तेज तपई जिम सूर // 13 // सू० // मदनराय तइं वसि किउ रे रूपइं हराव्यो काम / क्रोध-लोभनइं वसि करी रे माया नासी गई ताम // 14 // सू०।। छत्रीस गुणे करी सोभतो रे चिरंजीवी गुरुण्य / लोचन अमिय-कचोलडा रे सोवनवन-श(स)म काय // 15 // सू०॥ मुझ मनि तुं गुरु जीवश्यो रे जिम सीता मनि राम / जिम मधुकर.मनि मालती रे तिम समरूं तुम नाम // 16 // सू०।। तपी तपी तप आकरो रे दुरबल काया कोध / जस घरि प्रभु पगलां ठव्यां रे तस मनवंछित सिद्ध // 17 // सू०॥ तुझ नामथी सुख-संपदा रे दरिसण जयजयकार / श्रीविजयदेव-पटोधरु रे सकल-जंतु-आधार पंडित-साधु-शिरोमणि रे दर्शनविजय कविराय / तासतणई सुपसाउलइ रे प्रेमविजय गुण गाय // 19 / / सू०॥ इति श्रीविजयप्रभसूरि बारमास संपूर्णः / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org