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अनुसन्धान-५९
वळी, ज्ञानात्मक आत्मिक अवस्थाओ मुख्यत्वे बे ज होय छे - क्षायोपशमिक अने क्षायिक.५ केवलदर्शन क्षायिक भाव छे, तेथी क्षायोपशमिक अवस्थामां तो ते न ज होय. अने क्षायिक केवली अवस्थामां तो तमे आने स्वीकारता नथी. तो केवलदर्शन रहेशे क्यां ? (वि.ण. १९४-१९५)
अ. - केवलदर्शन जेवी कोई चीज होती ज नथी. तो अना रहेवान रहेवानी चिन्ता शुं काम करवी जोइ ?
क्र. - जैन आगमोमां अनेक ठेकाणे ४ दर्शन, ४ दर्शनावरण कर्म, ४ अनाकारोपयोग व. प्ररूपणाओ छे.६ हवे जो तमे केवलदर्शन, अस्तित्व ज न स्वीकारो तो तमारे ओ तमाम प्ररूपणाओ साथे विरोध आवशे. (वि.ण. १९६)
अ. - तमे अमाझं मन्तव्य बराबर समजता नथी. अमे ज्यारे केवलदर्शननो निषेध करीओ छीओ, त्यारे अनो अर्थ ओ नथी के अमे केवलदर्शनना अस्तित्वने ज सदन्तर नकारीओ छीओ. अमे तो फक्त ओम ज कहीओ छीओ के केवलदर्शन ओ केवलज्ञानथी विलक्षण के पृथक् बाबत नथी. ओक ज क्रिया (सर्व पदार्थोनुं बोधात्मक ग्रहण ज) बे नामे ओळखाय छे. माटे ओ क्रियाने केवलज्ञाननी जेम केवलदर्शन पण गणीओ तो शास्त्रीय प्ररूपणाओ साथे कोई विरोध आवतो नथी. (वि.ण. १९७)
क्र. - तमारा मन्तव्यमांत्रण वात विचारणीय लागे छे : १. जो केवलज्ञान अने केवलदर्शन अेक ज होत तो निरर्थक बेनी प्ररूपणा
शुं काम करात ? बन्नेनां अलग-अलग आवारक कर्मो पण शा माटे
देखाडात ? (वि.ण. १९८) २. 'सिद्ध भगवन्तो साकार अने निराकार बन्ने लक्षणवाळा होय छे' ओम
शास्त्रोमां कडं छे. हवे जो केवलदर्शन ओ केवलज्ञानथी जुदुं न होय तो, ज्ञान साकारोपयोगात्मक होवाथी सिद्धोने निराकारोपयोग ज नहीं मळे, अने
तो तेओने निराकार अवस्था पण कई रीते घटशे ? (वि.ण. १९९) ३. ज्ञेय पदार्थोने पोतीका स्वरूपे जाणवा ओ बोधक्रिया (-ज्ञान) छे, अने
द्रष्टव्य पदार्थोने सामान्य स्वरूपे जोवा मे साक्षात्कारक्रिया (-दर्शन) छे,