________________
जून - २०१२
१२५
सन्मतितर्कगत केवलचर्चा (क्रमवाद-भेदाभेदवाद) मणपज्जवणाणतो, णाणस्स य दरिसणस्स य विसेसो ।
केवलणाणं पुण, दंसणं ति णाणं ति य समाणं ॥२.३।। टी. - मनःपर्यवज्ञान सुधी ज (अर्थात् मत्यादि चार ज्ञान अने चक्षुः वगेरे त्रण दर्शनमां) ज्ञान अने दर्शन वच्चे विशेष- विश्लेष-क्रमिकता होय छे. पण जे केवलबोध छे, तदात्मक केवलदर्शन अने केवलज्ञान समानकालीन ज होय छे. जेम सूर्यनो प्रकाश अने ताप साथे ज वरसे छे तेम केवली ज्यारे जाणे छे त्यारे ज जुओ छे (ओवो आचार्यनो अभिप्राय छे).
वि. - केटलाक विवेचको आ गाथाना अर्थमां ओक स्पष्टता करता होय छे के "श्रीसिद्धसेनाचार्य वास्तवमां तो अभेदवादी ज छे, तेथी 'समाणं'नो 'समानकालीन' ओवो अर्थ आपाततः ज समजवो जोइओ. कारण के ओनो साचो अर्थ तो 'केवलज्ञान अने केवलदर्शन ओक ज छे' अवो छे."
पण आपणे उपर जोयुं तेम श्रीसिद्धसेनाचार्य अभेदवादी नहीं, पण भेदाभेदवादी छे. अने भेदाभेदवादमां तो केवलज्ञान अने केवलदर्शन समानकालीन ज छे. तेथी टीकाकार भगवन्ते करेलो अर्थ आपाततः नहीं, पण वास्तविक ज समजवो जोइए.
केइ भणंति ‘जइया जाणइ तइया ण पासइ जिणो' त्ति ।
सुत्तमवलंबमाणा तित्थयरासायणाऽभीरू ॥२.४।। टि. - सूत्रमात्रने वळगी रहेनारा अने तीर्थकरोनी आशातनाथी न डरनारा केटलाक आचार्यो 'ज्यारे केवली जाणे छे त्यारे जोता नथी' (अर्थात् केवली भगवन्तने केवलज्ञान वखते केवलदर्शननो उपयोग होतो नथी.) ओम कहे छे.
वि. - आमां क्रमवादनुं खण्डन करवा माटे क्रमवादीओ, मन्तव्य रजू करवामां आव्युं छे.
केवलणाणावरणक्खयजायं केवलं जहा णाणं ।
तह दंसणं पि जुज्जइ णियआवरणक्खयस्संते ॥२.५।। टी. - केवलज्ञानावरणनो क्षय थाय अटले जेम केवलज्ञान उत्पन्न