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अनुसन्धान-५९
*आ बाबतमां सौथी महत्त्वनी गणाय तेवी साक्षी मे छे के विशेषणवति के वि.भाष्यमां उल्लिखित अभेदवादनी दलीलोमांथी महत्त्वपूर्ण ओक पण दलील सन्मतितर्कमां श्रीसिद्धसेनाचार्यना केवलज्ञान-दर्शन अंगेना स्ववक्तव्यमां प्रायः निर्दिष्ट नथी. किन्तु युगपद्वादनी ओकथी वधु दलीलो शब्दशः सन्मतिमां कर्तानी स्वमान्यता तरीके देखाय छे.२१ तो आ ज वात सन्मतिकारना अभेदवादी न होवाना प्रमाणमां पूरती नथी ?
जो के श्रीअभयदेवसूरिजी, मलधारी श्रीहेमचन्द्रसूरिजी, उपाध्याय श्रीयशोविजयजी जेवा बहुश्रुत भगवन्तो वगर जवाबदारीओ तो दिवाकरजीने अभेदवादी न ज जणावे. पण प्रश्न ओ छे के एकाधिक साक्ष्यो दिवाकरजीना युगपद्वादी होवानुं समर्थन केम करे छे ? सन्मतिकारना मन्तव्यो विशे श्रीहरिभद्रसूरिजी अने श्रीअभयदेवसूरिजी, मलयगिरिजी अने मलधारीजीना अभिप्रायोमां परस्पर आटली विसंगति शा माटे ? सन्मतिकारनां पोतानां ज वचनोमांथी आ विसंगतिनुं निराकरण शोधवा आपणे प्रयत्न करीशुं.
★ ★ ★ सन्मतितर्क सिवाय सिद्धसेन दिवाकरजीओ केवलज्ञान-दर्शन अंगेनुं पोतानु मन्तव्य रजू कर्यु होय, अर्बु सम्प्राप्त अकमात्र स्थान, अनेक स्थळे उद्धृत नीचे- पद्य छ :
“एवं कल्पितभेदमप्रतिहतं सर्वज्ञतालाञ्छनं, सर्वेषां तमसां निहन्तु जगतामालोकनं शाश्वतम् । नित्यं पश्यति बुध्यते च युगपद् नानाविधानि प्रभो!, स्थित्युत्पत्तिविनाशवन्ति विमलद्रव्याणि ते केवलम् ॥"
(आम जेना भेदो कल्पित कराया छे तेवो, प्रतिघातथी रहित, सघळांये अज्ञानान्धकारने उलेची नाखनार, समग्र विश्वमा प्रकाश पाथरनार, त्रिकालगामी अने सर्वज्ञताना चिह्नरूप अवो आपनो केवलबोध अविरतपणे अनेक प्रकारनां अने उत्पत्ति-विनाश-ध्रौव्यथी युक्त शुद्ध द्रव्योने अकसाथे जुओ छे अने जाणे छे.)
हवे आमां जे 'कल्पितभेदं' शब्द छे, ते जोइने विद्वानो, श्रीसिद्धसेनाचार्य