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फेब्रुआरी
रोहगुप्त पण तेमनाथी जुदा ज होय अने स्थविरावलीकारे अनाभोगे तेओने अक गणी लीधा होय तेम न बने ?
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२०१२
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हवे आपणे श्रीगुप्ताचार्य अंगे थोडीक चर्चा करीशुं. दुस्समकालसमणसंघथयं, विचारश्रेणि जेवा ग्रन्थोमां भद्रगुप्तसूरिजी पछी अने वज्रस्वामी पहेलांना पट्टधरनुं नाम ‘श्रीगुप्ताचार्य' जणाव्युं छे. युगप्रधानपट्टावलीमां तो तेमनो १५ वर्षनो युगप्रधानपर्याय पण जणाव्यो छे. परन्तु अनी सामे कल्पसूत्रनी के नन्दिसूत्रनी स्थविरावली के जे इतिहास माटेना अत्यन्त प्राचीन अने प्रामाणिक साधन छे तेमां अने मध्यकालीन अमुक पट्टावलीओमां श्रीगुप्ताचार्यनो उल्लेख सुद्धां नथी. कथासाहित्यमां पण भद्रगुप्तसूरिजी बाद वज्रस्वामी संघनायक बन्या अवुं ज वर्णन मळे छे. परिणामे उपरोक्त ग्रन्थोमां करायेला श्रीगुप्ताचार्यना युगप्रधान होवाना उल्लेखने अप्रामाणिक समजवामां आवे छे. ओटलुं ज नहीं, तेमना अस्तित्वने पण शंकाना दायरामां मूकवामां आवे छे. १
परन्तु, अम करवुं योग्य नथी. कारण के जो रोहगुप्तने वीर नि.सं. ५४४मां निह्नव तरीके जाहेर करनार श्रीगुप्ताचार्य हता ते नक्की ज छे, तो वीर नि.सं. ५३५ के मतान्तरे ५३३मां स्वर्गवासी थयेला भद्रगुप्तसूरिजी पछी श्रीगुप्ताचार्य संघनायक बन्या हता ते वातनो इनकार करवानो रहेतो ज नथी. प्रश्न फक्त स्थविरावलीओमां तेमना अनुल्लेखनो ज छे. अने ते पण स्थविरावलीओने ध्यानथी तपासीओ तो अनुत्तरित रहेतो नथी.
आपणे त्यां जे पट्टावलीओ मळे छे ते मुख्यत्वे बे प्रकारनी छे : (१) गुरुपरम्परा - गणधरवंशने वर्णवती (२) वाचनाचार्यपरम्परा - वाचकवंशने वर्णवती. गुरुपरम्पराने लगती पट्टावलीओमां सुधर्मास्वामीथी शरु करीने प्रायः पोताना गुरुभगवन्त सुधीनी शिष्य-प्रशिष्यपरम्परानुं वर्णन होय छे. तेथी परम्परामां नहीं आवता महापुरुषोनां नाम तेमां न नोंधाय ते स्वाभाविक छे. कल्पगत स्थविरावली पण देवर्द्धिगणिनी गुरुपरम्परा ज छे. अने माटे ज प्रचलित गुरुपट्टावलीओ करतां आ स्थविरावली आर्य वज्र पछी जुदी पडी
१. वीरनिर्वाणसंवत् और जैन कालगणना पृष्ठ १३३ थी १३५