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फेब्रुआरी - २०१२
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वर्षनो ज पडे छे. कारण के वीर नि.सं. ४९५ थी आरम्भातो भद्रगुप्तसूरिजीनो वाचनाचार्य-पर्याय कुल केटला वर्षनो हतो ते विशे बे मत मळे छे : 'इगयाल (-४१ वर्ष)' अने 'इगुणयाल (-३९ वर्ष)'. माथुरी गणना ४१ वर्ष स्वीकारती होवाथी ते ५३५ (४९५+४१)मां भद्रगुप्तसूरिजी, स्वर्गगमन स्वीकारे छे अने ४३६ थी ४७१ सुधी वज्रस्वामीने अने ४७२ थी ४८४ आर्यरक्षितने युगप्रधान गणे छे. ज्यारे 'इगुणयाल' स्वीकारती वालभी गणना मुजब - भद्रगुप्तसूरिजी वीर नि.सं. ४९५ थी ५३३ (४९५+३९), श्रीगुप्ताचार्य - ५३४ थी ५४८, वज्रस्वामी- ५४९ थी ५८४ अने आर्यरक्षित - ५८५ थी ५९७ - आ रीते युगप्रधानपर्याय मळे छे. मतलब के वीर नि.सं. ५३५ पछीनी तमाम घटनाओमां १३-१३ वर्षनो फेर पडे छे. कारण के श्रीगुप्तसूरिजीनां १५ वर्ष उमेरतां अने भद्रगुप्तसूरिजीनां २ वर्ष ओछां करतां १३ वर्ष वधे छे.
आ तफावत छेक देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणनी अध्यक्षतामां थयेली वालभी वाचना सुधी चालु रह्यो छे – “समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव० सव्वदुक्खप्पहीणस्स नव वाससयाइं विइक्कंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ । वायणंतरे पुण अयं तेणउए संवच्छरे काले गच्छइ इति दीसइ ।" (कल्प-व्याख्यान-६ना अन्तभागे)
___अर्थ- "श्रमण भगवान महावीरने निर्वाण पाम्ये नवसो वर्ष व्यतीत थयां. अने दसमा सैका ८०मुं वर्ष चाली रह्यं छे. वाचनान्तर प्रमाणे (-वालभी वाचना प्रमाणे) तो आ ९३९ वर्ष चाली रह्यं छे."
स्पष्ट छे के श्रीगुप्ताचार्यनी गणतरीथी बे वाचनाओ वच्चे जे १३ वर्षनो तफावत पड्यो हतो ते देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणनी अध्यक्षतामां थयेली वाचना सुधी चालु रह्यो हतो. अने तेने लीधे कल्पसूत्रमा बे मतोनो उल्लेख जरूरी बन्यो हतो.
वालभी गणनामा १३ वर्षनी उमेरणीथी घणी असंगतिओ सर्जावा पामी कल्पसूत्रना प्रस्तुत पाठनी व्याख्या, टीकाओमा अत्यन्त सन्दिग्ध अथवा अयुक्त रीते करवामां आवी छे. आ पाठनो अत्रे दर्शावायेलो सचोट अर्थ श्रीकल्याणविजयजीओ दर्शाव्यो छे के जे तेओनी महाप्रज्ञतानो उत्तम नमूनो छे. आ नोंधमां करवामां आवेला युगप्रधानपट्टावली, विचारश्रेणि व.ना उल्लेखो पण तेमणे लखेला ग्रन्थ - वीर निर्वाण संवत् और जैन कालगणना-मांथी लेवामां आव्या छे.