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डिसेम्बर २०११
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पाप तत्त्व हिव ब्यासी भेद । ते कहितां कोइ म धरु खेद । पहिलूं जोईइ नरनइं न्यांन । ते पांचइ जिणि कीधां यान ॥२४॥ मतिन्यान मति सुंदर नही । श्रुतन्यान जाइ श्रुत वही । अवधिन्यान पापि न ऊपजइ । मनपर्यव अंतराई भजइ ॥२५॥ अढाई दीपि नर तिरि जेतला । मनोगत भाव जाणइं तेतला । न्यान पंचम छइ केवलनाण । चऊद राज आमला प्रमाण ॥२६॥ भव कोटी भाजिं संदेह । ते जिणि पापि दीधु छेह । छती लाछि अवसर पामीइ । दिवराइ नही जिणि ठा(वा)मीइ ॥२७॥ उद्यम करतां लाभ न होइ । पोतानी नीमी सवि खोइ । घरि खावा छइ संपत्ति घणी । पणिं रोगिं काया रेवणी ॥२८॥ भोगांतराइं विलसइ नही । सकल लाछि जास्यइ ते सही । हिव उपभोग कहुं जिणि रुलिउ । दंपति योग सरीसु मिलिउ ॥२९॥ हुइ नपुंसक कइ रूसणुं । जोड विहंडइ लाजइ घणुं । नव ए दशमुं वीर्यांतराय । समरथ रोगि बल नवि थाय ॥३०॥ पापकर्मि अंतराई दसइ । अदाप देखइ हाथ जि घसइ । नव आवरण बीजां छई जिस्यां । कहुं छतां दीपिं नही तिस्यां ॥३१॥ चक्षुदर्शन नयण निलाडि । उरम छायादिक आविं आडि । अचक्षुदर्शन अभिप्राय । अपर इंद्रय बल हीणां जाय ॥३२॥ एक भेद हिव बीजउ कहइ । विशेष वस्तु न्यानि निरवहइ । ए चिहुंनइं पातक आवरण । निद्रा पंच कहितां दिउ कर्ण ॥३३॥ निद्रा ते संचलि जागीइ । सुखि समाधि वतइ लागीइ । निद्रानिद्रा बीजी सुणउ । जागइ जुधं धूणइ घणउ ॥३४॥ प्रचुला नामिं हिव सांभलउ । बइठां ऊभां नर घांघलउ । प्रचुला प्रचुला नामि नरींद्र । हीडइ हालइ नयणे नीद्र ॥३५॥ पंचम निद्रा छइ थीणधी । तेहना गुण न कहिं खीणधी । दृढ संघेण धणीनइं तेह । वासुदेव बल आधुं जेह ॥३६॥ गजेंद्र विणासइ निद्रा समइ । नारि नरगि छ नर सातमइ । बांधइ कर्म हुइ नारकी । पापकर्म ओगणीसइ बकीं ॥३७॥