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अनुसन्धान-५७
एहतणां विवरण सांभले । हाथ पग नख नइ आंगले । ऊदारिक उपांग तेरमु । वैक्रय कहीइ छइ चऊदमुं ॥१०॥ पनरसमु आहारकोपांग । पुण्यप्रकृति लहइ अंग उपांग । तेजस कार्मण सदा अनंग । निरमल पामइ सयर पंचांग ॥११॥ हाड सवे हुई मर्कट बंध । जिहां जिहां सयरतणी छई संधि । पाटु विचि खीली बंधेण । वज्रऋषभनाराच संघेण ॥१२॥ भेद एह सोलसमु कहिउ । संस्थान समचउरस लहिउ । सतरसमउ गौरादिक वर्ण । सुंदर रूप नयण आकर्ण ॥१३॥ धुरि अड्डार हुआ ओगणीस । देह सुगंध रस कहीइ वीस ।। एकवीसमु सयर सुकुमाल । अति भारे नही हलूउ बाल ॥१४॥ बावीसमु दीसइ दुद्धर्ष । रूपिं सहू आकंपइ पुरूष । त्रेवीसमउ ए पुण संपजइ । सासोसास सुरभि ऊपजइ ॥१५॥ पुण्यपसाइं एह चउवीस । आतपकर्म कहूं पंचवीस । सभा सोभावइ नर एकलु । तेजकर्म सविहुंथी भलु ॥१६।। छव्वीसमु ए पुण्य प्रकृति । सत्तावीस मंथर गजगति । अट्ठावीसम कर्म निर्माण । नर तिर्यंच अवयव शुभ जाणि ॥१७॥ दस त्रसादि कर्म फल एह । छाया तावड जाणइ बेह । भय त्रासिं ज विगलेंदिआ । ओगणत्रीस भेद ए कहिआ ॥१८॥ बादरकर्म दीसइं तिसु देह । बांधइ भेद त्रीसमु एह । पूरी पर्याप्ति हुइ एकत्रीसमइ । सयरि जीव एक बत्रीसमइ ॥१९॥ थिरकर्म अस्थ्यादिक दंत । तेत्रीसमु दृढ होइ जंत । नाभि ऊंचा अवयव जेतला । सरि लागि हरखि केतला ॥२०॥ भेद चउत्रीसम बोल्यु सोइ । शुभ कर्म सोभागी होइ । ए पणत्रीस छत्रीसम छती । सुसरकर्म वाणी रसवती ॥२१॥ आदेय कर्म सहू मानइ कहिउ । भेद सा[ड]त्रीसम इम निरवहिउ । यशःकर्म पुंठिं गुणग्राम । बोलिं ते अठत्रीसम नाम ॥२२॥ सुरनर तिरिय संपूरण आयु । त्रिण्णि भेद एहू पुण थाय । तीरथंकर जीव हुइ जगदीश । पुण्यतत्त्व ए बइतालीस ॥२३॥