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अनुसन्धान-५०
वीटी कोट रह्या षट राय आकल-वाकल सहु को थाय । ईधण पाणि जोईइ अन किम रहइ थीर लोकोनां मन ॥११।(१२)॥ कुभराय संकटमां पडइ धरि धीर्य साहामो नवी भडइ । लाजइ मुख देखाडउ नही ख्यत्रीनिं लया छइ अही ॥१२।(१३)। वाणिग वायदइ लया थाय दाता लज कुण भुख्यो जाय । पंडीत लाज ऊतर नवी थयो ख्यत्री लया न्हासी गयो ॥१३।(१४)।। कुभराय शंकाणो जसई मली बुधि वीमासइ तसई । पीता तणइ कहइ म करो खेद च्यता हवडा करस्यु छेद ॥१४॥(१५)। दूत मोकलो विरी कनिं आवे पूत्री देस्युं तनि । एक एक मानवी जाणइ जेम छइ तणइ कहइ वरीवो तेम ॥१५।(१६)। दूत मोकल्यो मन ओहोलासिं अ(आ)व्यो नृप विरीनिं पासि । का तुम्यो छाना आवज्यो मलीनि परणी जाअज्यो ॥१६॥(१७)। छइ तणइ छा- एम कर्दा परणेवा मनडुं गहिगर्दा । को कोहोनि न जणावइ वात राति छइ नगरम्हा जात ॥१७।(१८)। कुभरायनि मलीआ त्यांहिं छइ नइं घाल्या ओरडामाहिं । परभाति उंठइ नरभुप नरखइ मली प्रतिमारूप ॥१८(१९)। देखी हरखइ हईआ मझारि एवं रूप नही संसारिं । नागकुमारी कइ क्यनरी वीद्याधरी कइ सूरसूदरी ॥१९।(२०)। ए कन्या वरसइ जो आज जाणुं पाम्यो त्रीभोवन राज । एम चीतवता सघला राय मली कुमरी परगट थाय ॥२०।(२१।। मलीरूप दीठु जेटलइ प्रतीमारूप घट्युं तेटलइ । हंसगति हीडइ काम्यनी चंदमुखी सुदर भाम्यनी ॥२१॥(२२)। मृगनयणीनिं कुडल कानिं चीत्रालकी नीलइ वानि । सोवनमेखला नेवर पाय देखी चकीत थया त्याहां राय ॥२२।(२३)। ज्यारइ रागी हुआ घणुं ऊघाड्युं प्रतिमा ढाकणुं । दूरगंध गंधमाहिथी उंछलइ छइ राय तव पाछा टलइ ॥२३।(२४)। भोगी छइ सुगंधी सदा दूरगंध माहिं वशा नही कदा । अकलाणा दइ पाछा पाय मेलां एगठा सघलां राय ॥२४(२५)।