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सप्टेम्बर २००८
ओक वात बहु स्पष्ट छ : कोई पण बाबतनो सार शुं ते समजवानी तेमज तेने पामी लेवानी मानवमननी झंखना छेक आदिकाळ जेटली पुराणी छे. आचाराङ्गनियुक्तिनी ज वात करीओ, तो नियुक्तिनां मंडाण करतां ज नियुक्तिकार सारनी शोध करतां फरमावे छे के - "अंगसूत्रोनो सार शो ?"; "आचाराङ्ग", "तेनो सार ?"; "अनुयोग-अर्थ", "तेनो सार ?"; "प्ररूपणा'', "प्ररूपणानो सार ?"; "चारित्र"; "चारित्रनो सार ?"; "निर्वाण'', "अने निर्वाणनो सार ?"; तो कहे "अव्याबाध सुख". (आचा. अध्य.१, उ.१, नि.गा. १६-१७)
तो उपाध्यायजी पण सारनी खोजमां क्यां पाछा पड्या छ ? तेमणे पण पोतानी ओ शोध परिणाम नोंध्यु ज छे :
सारमेतन्मया लब्धं श्रुताब्धेरवगाहनात् ।
भक्तिर्भागवती बीजं परमानन्दसम्पदाम् ॥
अटले आपणे अम कहीओ के ज्ञानसार ओ जिन-प्रवचन- सारदोहन तो छ ज, पण साथे साथे ओ उपाध्यायजीओ करेली, प्रवचनना सारनी-अर्कनी, ऊंडी खोजनुं तत्त्वरसछलकतुं सुमधुर परिणाम पण छे, तो ते बिलकुल उचित पण छे अने महत्त्वपूर्ण पण छे, अमां कोई शंका नथी.
ज्ञानसार अ ज्ञानना अमृतरसनो महासागर छे. उपाध्यायजी भले लखे के “पीयूषमसमुद्रोत्थं' - समुद्र थकी नहि प्रगटेलुं अमृत ते ज्ञान ! आपणी अपेक्षाओ तो श्रुतज्ञानना महासागरनुं मन्थन करीने उपाध्यायजीओ मेळवी आपेलु अमृत ज छे आ ज्ञानसार !
___ अमारा मोटा महाराज पूज्यपाद आचार्य महाराज श्री विजयनन्दनसूरीश्वरजी महाराज, श्रीहारिभद्रीय 'अष्टक प्रकरण' ना सन्दर्भमां, कहेता के "माणस, जीवनमां, ३२ भूलो करे. जेम के पहेली 'देव'ना विषयमां भूल करे; अम् ३२ भूल करे. आ ओक ओक अष्टक ओ ओक ओक भूल दूर करी आपनारु अष्टक छे. 'महादेवाष्टक' भणो अटले देवविषयक मान्यता बदलाय, शुद्ध थाय. आम ३२ अष्टके ३२ भूलो सुधरे."
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