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त्रण जिनस्तोत्रो
-सं. विजयशीलचन्द्रसूरि फुटकळ ह.लि. पत्रोमांथी जडी आवेलां त्रण स्तोत्रकाव्यो अहीं प्रस्तुत छे. ते पैकी प्रथम बे तो गेय काव्यो छे. ते बनेना कर्ता मुनि रूपचन्द्र होवानुं तेमां गंथायेला नामाचरण द्वारा जाणी शकाय छे. तेमना समय के काव्योनो रचना समय जाणी शकातो नथी.
पहेलुं गीत पद्धडी छंदमां छे, अने बीजूं, तेना मथाळे मूकेल 'जय शिवॐकारा' ए ढाळमां छे, जे ढाळ / देशीना अभ्यासीओ माटे महत्त्वपूर्ण बनी शके तेम छे. बन्ने रचनाओ सरल छतां प्रासादिक अने प्रांजल संस्कृत पदावलीमां गुंफित छे, जे उपरथी कविनी क्षमतानो सहज अंदाज मळी आवे छे.
त्रीजु स्तोत्र छंदोबद्ध छे. तेना कर्ता देवरत्न नामक जैन मुनि छे, अने आरंभमां करेला नमस्कार परथी ते श्रीविवेकरत्नसूरिना शिष्य हशे तेम मानी शकाय तेम छे. आ स्तोत्रमा चांपानेरपुरमण्डन अने पावागढ (पावकाद्रि) उपर बिराजता तीर्थंकर श्रीसंभवनाथनी स्तवना थई छे. पावागढ उपर हाले दिगम्बर समाजना कबजामां रहेलां जैन मंदिरो थोडाक दायकाओ पहेला श्वेताम्बर संघना कबजामां हतां, अने वास्तवमां ते मंदिरो तथा तेमांनां बिंबो श्वेताम्बर परंपरानां ज छे, जे एक ऐतिहासिक अने धार्मिक तथ्य छे. ते मंदिरो पैकी कोई मंदिरमा मूळनायक तरीके संभवनाथनी प्रतिमा हशे, तेमनी आमां स्तवना थई छे.
जे पत्रमा आ स्तोत्र हतुं, ते संभवत: सोळमां शतकनुं हतुं ; तेथी आ स्तोत्ररचना सोळमा शतकनी के कदाच ते पूर्वेनी होवानुं अनुमान छे.
छंद पद्धडी ॥ जय वीतमोह ! जय वीतदोष ! जय वीतलोभ ! जय वीतरोष ! ॥ जय वीतराग ! देवाधिदेव ! मम भवतु नाथ ! तव शरणमेव ॥१॥ आंकणी ॥
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