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डिसेम्बर-२००९
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श्रीसरसतिनइं करूं प्रणाम, जिम सिझइ मनवंछितकाम, बार व्रतनो करूं सज्झाय, पुण्य घणुं जिम पोति थाय ॥१॥ प्रणमुं देव सदा अरिहंत, श्रीसुसाधु गुरु किरिआवंत, धर्म केवलीनो भाख्यो सार, तणि तत्त्व धारूं निरधार ॥२॥ कुगुरू कुदेव कुधर्म परिहरूं, मिथ्यामति संगति नवी(वि)करूं, देव सदा जांहरू (जूहारूं) मनरूलि, छतइ योगि वांदुं गुरु वली ॥३॥ देवतणी सामग्री विना, करवी एक चईतवंदना, पूर्व दिसिनई साहमा रही, एह वात सुधि सदही ॥४॥ दिन प्रति गणवा दस नोकार, सुधो भाव धरि निरधार, आगल पाछल पोहोचाईं वली, जो न गणाय कारण भणी ॥५॥ नोकारसि(सी) तणुं पचखाण, करवं नित उगमतइं भाण, रात्रि पणि करवो दुविहार, कारणि जयणा कोईक वार ॥६॥ व(वा)सर प्रति देहरइ दोकडा, पांच मुकवा मे रोकडा, साधारणनई ज्ञान अमारि, दोकडा पाँच पाँच मन धारिं ॥७॥ जे मोटि दस आसातना, देहरइ टालुं एकमनां, पाणि भोजन नई तंबोल, वांहणि मेहूण सयण कल्लोल ॥८॥ वडीणि(नी)त नइं लोहडीनि(नी)त, थु(यूं)क जुवटुं वरजु नित, देवगभारइ ए टालीइ, तो समकित सुधुं पालीए (इ) ॥९॥ पिहलई व्रत मोटा त्रस जीव, संकलपी(पि) नि[र]पीराध अजि(जी)व, न हणुं क्रम बालादिक तणी, जयणा आप कुटंबह भणी ॥१०॥ कन्या गाय भोमिनइं भाख्य, थापी(पि)णमोसो कुडि साख्य, ए मोटां जे जु(जू)ठां पांच, तेह तणो परिहरूं प्रपंच ॥११॥ खात्र खणी चोरि नवी करूं, वाट पाडि कोइनुं नवि हरूं, राजडंड जेहथी होय, अदतादान, पचवु(खु) सोय ॥१२॥ दाणचोरि वरसई मोकली, रूपइया सोनि सवी(वि)मली, लाधी वस्तु घणीनइं दीउं, घणी न मिलइ अरध धर्मइं दीउं ॥१३॥ चोथइ व्रत कायाइं सदां, पालुं जिम पा{ संपदा, मन वचनि जयणा योइ, ब्रह्मव्रत मुझ एणी परि होइ ॥१४॥