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अनुसंधान - २३
उत्तर भारतना एक प्रमुख वृत्तपत्र 'हिन्दुस्तान' ( ४ जुलाई, २००२) नो हवालो आपीने, णमो तित्थस्स' (मासिक पत्र, सं. ललित नाहटा, दिल्ली; फरवरी - २००३) मां आवेला एक समाचार प्रमाणे, दरभंगा पासेनी, मधुबनी विस्तारनी 'अकौर बस्ती' (बुद्धिकालीन अंगूतरप्पा ) मांथी, स्थानिक सी. एम. कोलेजना प्राध्यापक इतिहासविद डॉ. सत्यनारायण ठाकुरने, एक स्त्री आकृति धरावती पत्थरनी जिन - प्रतिमा जडी आवी छे. डो. ठाकुरना निवेदन प्रमाणे आ प्रतिमा जैन स्त्रीतीर्थंकर मल्लिनाथनी छे. आ मूर्ति ऊभी मूर्ति छे. बे ईंच लांबी, दोढ ईंच पहोळी अने जाडाईमां बे सेन्टिमीटर व्यास धरावती ते मूर्ति तांबावरणा पत्थरनी बनेली छे. तेनो समय ईसा पूर्व पन्दरसो वर्ष लगभगनो अंदाजवामां आव्यो छे. डो. ठाकुरना निवेदननो अंश आपणे जोईए :
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"डो. ठाकुरका कहना है कि उक्त मल्लिनाथकी प्रतिमा अकौर बस्ती से प्राप्त हुई है और इसकी बनावट जहां वर्धमान महावीर जैसी है, वहीं स्तन के उभार एवं शारीरिक संरचना स्पष्ट रूप से किसी महिला की प्रतीत होती है, जो उसे मल्लिनाथ प्रमाणित करने के लिए काफी है । वस्त्रों के तन पर रहने से स्पष्ट है कि मूर्ति श्वेताम्बर जैन के तीर्थंकर की है, जो इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करता है कि जैन धर्म इस काल तक श्वेताम्बरों की ही धरोहर रहा होगा ।"
आ हेवाल एटलो बधो स्वयंस्पष्ट छे के तेना पर विशेष कांई कहेवानी जरूर जणाती नथी.
सातेक दायका पहेलां, अमदावादथी 'जैन सत्य प्रकाश' नामे मासिक पत्र प्रगट थतुं हतुं तेना कोईक जूना अंकमां, घणा भागे डॉ. यु.पी. शाहना कोई लेखमां, मल्लिनाथनी एक खण्डित - मस्तक विहोणी पण स्तनो अने सरस केशपाश- चोटलो धरावती अद्भुत प्रतिमानी छबी जोयानुं सांभरे छे. ए मूर्ति लखनऊना म्युजियममां आजे पण विद्यमान छे, अने कलाविषयक ग्रन्थोमां तेनी तसवीर वारंवार छपाती पण रहे छे.
मल्लिनाथनी स्त्रीदेहधारी एक विशालकाय प्रतिमा अद्यावधि अज्ञात स्थितिमां राजस्थानमां क्यांक- कोई दिगम्बर मन्दिरमां ज आजे पण उपलब्ध छे. (तेनी झांखी छबी आ अंकमां ज अन्यत्र ( टाईटल पेज पर ) आपवामां
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