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मार्च २०१०
अभिव्यक्ति करने की एक विधि हैं । पहेलियाँ के दो पक्ष हैं। रूप की दृष्टि से विनोदजनक पर विषय की दृष्टि से गम्भीर ।
इस स्तोत्र में कुछ प्रश्न और उत्तर जैन धर्म के सामान्य सिद्धान्तों व मूल्यों का उल्लेख करते हैं। उनमें पंचपरमेष्ठियों के नामों की निरुक्ति नहीं मिलती । कुछ और पंचनमस्कार के मन्त्र के मूल्य और ध्यान के फल को रेखाङ्कित करते हैं जैसे हेमचन्द्राचार्य के योगशास्त्र ८/८-९ में मिलता है।
इस स्तोत्र के अहँ और ॐ के उत्तरों मे पंचनमस्कार का सार मिलता है । उपाध्याय और नील वर्ण का सम्बन्ध स्तोत्र के चौथे पद्य में आता है। इस सम्बन्ध की उत्पत्ति अज्ञात होते हुए भी महामन्त्र की साधना में पाच परमेष्ठियों और पाँच वर्गों के बीच में एक विशिष्ट सम्बन्ध विकसित हो गया है। मध्यकालीन पाण्डुलिपियों में इस प्रकार के चित्र मिलते हैं ५। आधुनिक जैनियों की दृष्टि में यह सम्बन्ध स्वाभाविक है । पूर्ण रूप में पांच भूत और शरीर के पांच अंगों में भी यह सम्बन्ध है।
सफेद मस्तक का ऊपरी
भाग सिद्ध लाल
आग आचार्य पीला हृदय उपाध्याय नीला नाभि
वायु साधु । काला
आकाश
अर्हत
।
पानी
पृथ्वी
पैर
४. इसके लिये देखिए महानिसीहसुत्त ३/९ । ५. देखिए U. P. Shah, “Panca-Paramesthis' in Jaina-Rupa-Mandana (Jaina
Iconography). New Delhi : Abhinav Publications, 1987, p. 44; British Library हस्तप्रत नं. Or. 2116C, पत्र १; और देखिए पंडितराज श्रीधुरन्धरविजयजी गणिवर्य, मुनिवर्य जम्बूविजयजी, मुनिवर्य श्रीतत्त्वानन्दविजयजी, नमस्कार स्वाध्याय संस्कृत विभाग, बम्बई, जैन साहित्य विकास मण्डल, १९६२, पृ. १६ के सामने तथा Victorious Ones. Jain Images of Perfection, ed. Ph. Granoff, Rubin Museum of Art, New York, 2009, p. 287, "P-34 The meaning of the
Mantra Om Hrim". ६. देखिए पू. मुनिराज श्रीकुन्दकुन्दविजयजी महाराज सा., नमस्कार चिन्तामणि, श्रीजिनदत्तसूरि
मण्डल, दादावाड़ी, अजमेर, १९८०, पृ. १४४-१४५ (श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन