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________________ डिसेम्बर २०११ क्रोध-मान-माया-लोभ अनंत जावजीव लगइं नवी जंत समकित हणी नरगगति लहइं भव अनंता भमी दुख सहइं ॥२३।। एह अप्रत्याख्यानीया च्यार संवच्छर लगइं रहई निरधार देशविरति नवि पामई सही गति तिर्यंचतणी ते कही ॥२४॥ पच्चखाणीया चोमासी च्यार चारित्र विना मानवगति सार संज्वलना पखवाडो रहइं मुगति विना सुरनी गति लहइं ॥२५॥ च्यार च्यार करतां सोल ए कह्या पंचवीसमाहिं नोकसाय नव लह्या हास्य कर्म ते हासुं करइ रतिकर्मइं रूडूं दीठई ठरई ॥२६।। अरतिकर्मइं रति न लहइं कही शोककर्मइं शोकिओ रहइं सही भयकर्मइं बीकण जीव थाय नबला आगलि नाठो जाय ॥२७|| कर्म दुगंछा ते कहवाय अणगमतुं दीठई दुख थाय मुखि थुकई नई मरडइ नाक पुण्यतणो इम टालइ वाक ॥२८॥ पुरुषवेद तृणदाह समान क्षण एक प्रजली थाइ मांन कोऊ दाह सरिखो स्त्रीवेद स्त्रीनइं अधिको पुरुषउ भेद ॥२९॥ नपुंसकवेद नगरनो दाह अहनिसि प्रजलई अतिहिं अगाह पणतीस पंचवीस साठि ए थई पापइं दुखिओ दुरगति जई ॥३०॥ तिरियदुगं जीव जाई तीर्यचि तिरिआनुपूर्वी आणइं खंचि इगबितिचउरिंद्रीनी जाति कुच्छित पापइं ए षट भाति ॥३१॥ चालई चालि खर करहातणी विरूई गति ते कुखगति भणी अडसठिमुं ते उपघात कर्म कंठ दशन मुख पीडा मर्म ॥३२॥ वर्ण-गंध-रस-चोथो स्पर्श ए विरूया ते पाप विमर्श काली वर्ण देह विरूओ गंध कडूओ रस खर स्पर्श संबंध ॥३३॥ वर्ण गंध ए बोहोत्त्यरि पातक भेद कह्या, संघयण संस्थानना धुरि बें रह्या पहलुं संघयण नई पहलुं संठाण ए बें पुण्य प्रकृति अहिनाण ॥३४॥ पहइलुं वज्रऋषभनाराच बीजूं संघयण ऋषभनाराच नाराच त्रीजुं अर्द्धनाराच चोथु पांचमुं कीलिका साच ॥३५॥ छटुं छेवढं ते कर्तुं समचउरंस संठाण धुरि लद्यु बीजुं न्यग्रोधमंडल जिस्युं सादि त्रीजुं चोथु वामन वस्युं ॥३६।।
SR No.229650
Book TitleNavtattva Chopai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size130 KB
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